क्यों बहा आंसू छलककर यह व्यथा कैसे सुनाउॅ?
रागिनी से राग गाकर क्या विरह का गान गाउॅ?
मैं अगर गा भी सका तो वह विरह का गान होगा।
छेड कर कोई गजल मैं क्यों समां बोझिल बनाउॅ?
सोचता हू दूर जाकर इस जहॉ को भूल जाउॅ।
याकि अपने ही हृदय का खून कागज पर बहाउॅ।
जानता हू कुछ लिखूगा वह प्रिये संवाद होगा।
क्यों निरर्थक स्याह दिल को कागजों में फिर लगाउॅ।
तिमिर की इस कालिमा में अरुण को कैसे भुलाउॅ?
जबकि खारा हो जहॉ प्रिय ! प्यास को कैसे बझाउॅ?
जिन कंटको से हृदय बेधित क्या उन्हें प्रियवर कहाउॅ?
क्यों बहा आंसू छलककर यह व्यथा कैसे सुनाउॅ?
एक बार फिर --
जवाब देंहटाएंसामने आई
आपकी सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई आपको ||
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति,बधाई.
जवाब देंहटाएंअशोक शुक्ल जी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंजब की खरा हो जहां प्रिय प्यास को कैसे बुझाऊँ
..भ्रमर ५
अशोक शुक्ल जी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंजब की खारा हो जहां प्रिय प्यास को कैसे बुझाऊँ
..भ्रमर ५
ravikar ji
जवाब देंहटाएंs.n.shukl ji
surendra shukla ji
thanks a lot