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शनिवार, 26 नवंबर 2011

अनकही बातें--खर्राटे

अनकही बातें--खर्राटे
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रजनी की नीरवता में स्तब्ध मौन  सब
और नींद से बेसुध सी तुम, सोयी रहती  तब
तुम्हारे नथुनों से लय मय  तान निकलती
कैसे कह दूं कि तुम हो खर्राटे    भरती
दिल के कुछ अरमान पूर्ण जो ना हो पाते
वो रातों में है सपने बन कर के आते
उसी तरह  बातें जो दिन भर  ना कह पाती
तुम्हारे  खर्राटे बन कर  बाहर  आती
बातों का अम्बार दबा जो मन के अन्दर
मौका मिलते उमड़ उमड़ आता है बाहर

 'फास्ट ट्रेक 'से जल्दी बाहर आती बातें
साफ़ सुनाई ना देती, लगती खर्राटे
दिन  की सारी घुटन निकल बाहर आती है
मन होता है शांत,नींद गहरी आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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