रविकर की पहली रचना ; अक्तूबर1978
विश्वास है बिलकुल नहीं कि भूल मैं तुझको सकूँगा -
जब रुपहली मोतियाँ खिलखिलायेंगी कभी -
घिर घटाएं माह पावस में सुनाएँ गरजने-
जब कभी व्याकुल नजर जा टिके उत्तुंग शिख पर -
ऋतुराज आकर या सुनाये जब प्रिये रव कोकिला-
याद कैसे छोड़ दूंगा तब भला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
सत्य है अब भी यही कि रूप पर आसक्त हूँ मैं -
पर तिमिर एकांत में, आवेश में उन्माद में भी -
कह नहीं सकती कि चाहा रूप पर अधिकार तेरे |
पर मधुप क्या दूर रह पाया मधुरता से कभी -
बन पतिंगा रूप पर तेरे जला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
पर समझ पाया नहीं मैं आप का यह खेल अब भी -
भूल करके इस भले को घर बनाओगी धरा पर -
खूबसूरत गुम्बदों को शीश पर ढोती रही तुम-
अंगूरी लताएँ खूबसूरत साथ में सजती रही जो -
चैन कैसे पा सकूँ उनको भुला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
सुंदर कविता, सुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
old is gold .and gold and gold and gold.........
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं!!
old is gold .and gold and gold and gold.........
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं!!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ ………
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
आपको दीपावली की शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.... वाह!!
जवाब देंहटाएंआपको दीप पर्व की सपरिवार सादर बधाईयां....
सुंदर प्रस्तुति । दीवाली मुबारक ।
जवाब देंहटाएंआशा संजय वन्दना, शुक्ला निशा महेंद्र |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ऐ, हिंदी के शुभ केंद्र ||