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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कन्यादान



मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

जीवन के दोहे


जीवन के दो खाश रंग, समझो मेरे यार |
एक रंग है दोस्ती, दूजा रंग है प्यार |1|

जिंदगी एक संघर्ष है, कदम कदम पे सीख |
मेहनत से सबकुछ मिले, बिन श्रम मिले न भीख |2|

जीवन का है मूल-मंत्र, सत्य, अहिंसा, धीर |
शौर्य, शील और साहस, सबको करता वीर |3|

जीवन जीने का ढंग, जीवन ही सीखलाए |
कोई जीवन पूर्व से, सीख के न आए |4|
जीवन चलता जायेगा, ज्यों नदिया की धार |
बांधे से भी ना रुके, यही है जीवन सार |5|

मत नापो लम्बाई को, नापो तुम गहराई |
जीवन को पा जाओगे, थाह जहाँ पे आई |6|

जीवन में सब सीख लिया, सुन ओ मेरे भाय |
एक चीज़ ना आ पाया, कैसे जिया जाय |7|

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

धुंध


देश ये पूरा
है धुंध की चपेट में,
चारो ही तरफ
है इसका ही साया;
जीवन अस्त-व्यस्त
आमो-खाश भी परेशान,
रेल, सड़क, वायु तक
हर मार्ग है बाधित;
ठण्ड के जोर से
हर चेहरा कुम्भलाया |

चादर ये कोहरे की
है क्षणभंगुर,
चाँद दिनों के बाद ही
सब यथावत होगा,
बसंत राजा के साथ ही
ये धुंध भी छंटेगा |

ये धुंध तो मेहमान है
चंद दिनों या महीने की,
पर उस धुंध का क्या
जो देश पर है छाया;
भ्रष्टाचार रूपी धुंध का
प्रकोप है हर तरफ,
हर जगह, हर शख्श
है इसके आगोश में |

देश को तबाही की ओर
है इसने बढ़ा रखा,
कारण तो कई है
पर समाधान दिखता नहीं,
पता नहीं कब तक
रहेगा ये घना साया ?
न जाने कब तक
रहेंगे हम लपेटे में ?

इस धुंध से वो धुंध
कहीं ज्यादा विकट है,
इस धुंध से सिर्फ
कुछ सेवाएं है रुकी;
उस धुंध ने तो
है देश को रोक रखा;
देश की प्रगति को
उसने बाधित कर रखा,
अर्श के बदले देश आज
फर्श में है पड़ा |

रविवार, 11 दिसंबर 2011

बाकि अभी नापना सारा आसमान है


१९ अन्य कवियों के साथ मेरा पहला काव्य संग्रह:
"टूटते सितारों की उड़ान"

अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है;
दो पग ही पथ में बढ़ा हूँ अभी,
आगे तो अभी पुरा जहाँ है |

हृदय में है ख्वाहिश, मन है सुदृढ़,
हाथों की लकीरों में भी कुछ निशान है :
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

बड़ों का आशीष, अपनों का साथ,
लेकर चला, मुझे खुद पर गुमान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

मित्रों की दुआ, ईश्वर की दया,
मिल जाए फिर सब आसान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

हरेक पग रखना है बहुत संभल के,
उंचाई तक जाना सोपान दर सोपान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

जमींदोज होंगी हर विषम परिस्थितियाँ,
साहित्य की दुनिया से ये पहला मिलान है;
अभी तो है ये पहली उड़ान,
बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

सोमवार, 28 नवंबर 2011

तेरे शहर का क्या नाम है?


तेरे शहर का क्या नाम है?
क्या वहां दो पल का आराम है?
यहाँ तो हर शहर मदहोश है,
न किसी को चैन है, न ही कहीं होश है I 

क्या वहां लोग दिल खोल के हँसते हैं?
मानव के रूप में मानव ही बसते हैं?
यहाँ तो हर शहर के लोग तनाव ग्रस्त हैं,
औरों की बात नहीं, सब खुद से ही त्रस्त हैं I 

अपराध और घोटाले क्या वह कुछ कम है?
सरकारी तंत्रों में क्या थोडा बहुत दम है?
इधर का हाल-बेहाल, अनियमितता का जाल है,
नाचती है आम जनता, नेता ठोकते ताल है I 

अगर हो ऐसा शहर तो जरा मुझे भी बताओ,
दो पल के लिए सही, एक बार तो बुलाओ,
इधर तो शहरों की संख्या बढती ही जा रही है,
पर आत्मीयता जैसी चीज़े कहीं खोती ही जा रही है I 

सोमवार, 21 नवंबर 2011

हस्ती हमारी


आशियाँ हमने बना रखा है तूफानों में,
और तूफानों को समेट रखा है अरमानो में,
हस्ती अब तो इतनी है हम दीवानों में,
अँधेरे में भी तीर लगते हैं निशानों में |

आशाएं हैं भरी हमारी उड़ानों में,
हौसलों की उठान है आसमानों में,
साहस है भरा, जो बिकते नहीं दुकानों में,
अक्सर तौलतें हैं खुद को पैमानों में |

देखेंगे कितना है दम इन हुक्मरानों में,
दिखायेंगे कितना है जोश हम जवानों में,
क्या रखा है अब उन पुराने फसानों में,
वो कर दिखायेंगे जो नहीं हुआ जमानों में |

शनिवार, 24 सितंबर 2011

सूखे नैन



नहीं आते आंसू,

सुख गया सागर,
इतना बहा कि अब
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

याद है मुझको
तेरा वो रूठना,
दो बुँदे बहके
तुझे मन थी लेती,
जहर गई वो बूंदें
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

आंसू नहीं मोती हैं
तुम्ही तो थे कहते,
एक भी ये मोती
तुम बिखरने नहीं देते,
खो गए वो मोती
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

वर्दी पहने जब निकले थे
दी मुस्कान के साथ विदाई,
आँखों में था पानी
दिल रुलाता था जुदाई,
सुख गया वो पानी,

इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

तब भी बहुत बहा था
जब ये खबर थी आई
देश रक्षा में तुने
अपनी जान है लुटाई,
पर अब नहीं बहते,

इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

जानती हूँ मैं
तुम नहीं हो आने वाले,
पर ये दिल ही नहीं मानता
तेरा इंतज़ार है करता,
करवटें बदल रोते-रोते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

सोमवार, 19 सितंबर 2011

दो पल की खुशियाँ

खुशियों भरा जीवन अब मिलता है कहाँ,
चैन-सुकून हर पल अब रहता है कहाँ,
जीवन हर वक़्त लिए एक छड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

संघर्ष ही जीवन का दूसरा नाम हो गया है,
कठिनाइयों का आना तो अब आम हो गया है,
किस्मत हर वक़्त मुह बाये खड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

भागते ही हम रहते हैं श्वांस भी न लेते,
जीवन को सिद्दत से हम जी भी न लेते,
हम सबको हर वक़्त लगी हड़बड़ी होती होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

कल क्या होगा किसी ने देखा भी नहीं,
निरंतर खुशियों की कोई रेखा भी नहीं,
जिंदगी भी तो बस घड़ी दो घड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |

शनिवार, 17 सितंबर 2011

जेबकतरी सरकार



बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

एक इंजिनियर की आत्मकथा


इंजिनीयर्स डे पर "मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया", जिनके जन तिथि पर ये मनाया जाता है, को सादर नमन |
पेश है मेरी एक रचना |

मैं एक इंजिनियर हूँ,
जिंदगी के हर एक क्षेत्र में, कभी जूनियर तो कभी सीनियर हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बचपन से लेके आज तक,
पढ़ाई से कभी रिश्ता न गया,
किताबों और कंप्यूटर में घुसा, कहने को मैं superior हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

चार साल वो कॉलेज के,
मस्ती में ही उड़ते गए,
कंपनी दर कंपनी रगड़ता हुआ, मैं अजीब creature हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

माँ-बाप के हरेक सपने,
पुरा किया पर साथ न रहा,
सब कुछ पाकर भी खोया हुआ, बहता हुआ मैं river हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

प्यार दोस्ती भी खूब किया,
शादी-बच्चे भी संभाला है,
जिम्मेदारी से भागा नही, मैं ख़ुद अपना career हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

पैसों की तो कमी न हुई,
पर परिवार संग रह न पाया,
भाग-दौड़ में भागता हुआ, चलता हुआ मैं timer हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

हर एक रूप जिंदगी का,
देखा है मैंने करीब से,
हर कष्टों को झेला मैंने, हर प्रॉब्लम से मैं familiar हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बुढ़ा हुआ तब पीछे देखा,
हाथ में कुछ न साथ में कुछ,
भटक-भटक के रुक सा गया, पड़ा हुआ एक furniture हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

मौत की घड़ी जब पास है आई,
पाने को कुछ न खोने को कुछ,
सबकी ही तरह रवाना होता, आसमान के मैं near हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

(ये एक आम इंजिनियर के मन की उस समय की सोच है जब वो पुरी जिंदगी बिताने के बाद मरने के कगार पर होता है। वो एक मध्यम वर्गीय परिवार से होके भी एक इंजिनियर तो बन जाता है पर जिंदगी भर वो 'आम' ही रह जाता है। )


बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिंदी हिन्दुस्तान है



हिंदी मेरी जान है,
भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |

खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |

देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |

हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |

देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

राष्ट्रभाषा हिंदी



हिंदी बस एक मात्र नहीं यह मातृभाषा है;
गर्व है मुझको हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा  है |

बिन निज भाषा उन्नति के, राष्ट्र का विकास नहीं;
परदेशी भाषा के बल पे, हो सकता कुछ खाश नहीं |

राष्ट्रभाषा जब हिंदी है, फिर अंग्रेजियत छोड़ दो;
हिन्दुस्तान में रहते हो, तो दोहरी नियत छोड़ दो |

हिंदी को अधिकार मिले, हर कोने में प्रयोग हो,
संसद में, हर राज्यों में, परदेश में भी उपयोग हो |

हिंदी जन-जन की भाषा, जन-जन तक इसका प्रचार हो;
भारत के हर क्षेत्र में पहुंचे, ऐसे नेक विचार हो |

भारत का हर एक वासी, हिंदी का सम्मान करे;
हर कोई सीखे, हर कोई बोले, नहीं कोई अपमान करे |

हिंदी को बना भारत की बिंदी, इसे सर्वत्र चमकाना है;
हर निजी, सरकारी काज में, हिंदी ही अपनाना है |

बुरा नहीं हर भाषा जानो, पर हिंदी ही सर्वोपरि हो;
हो ज्ञान भले हर भाषा का, पर निज भाषा सर्वोपरि हो |

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

आतंक का अंत



क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

आये दिन हो जाता है विस्फोट,
कई जिंदगियों का अस्तित्व उखड जाता है,
हो जाते हैं अनाथ कई मासूम,
और न जाने कितनो का सुहाग उजड़ जाता है |

अस्पतालों का भी तब विहंगम दृश्य होता है,
किसी का हाथ तो किसी का पैर धड़ से अदृश्य होता है |

विस्फोट की आवाज तो क्षणिक होती है,
पर कईयों के कानों में वो जिंदगी भर गूंजती है |

नेता इस में भी राजनीति से नहीं चुकते,
सरकार के नुमाइंदें भी समाधान नहीं, बस आश्वाशन देते हैं |

कब इस दहशत के माहौल से उबरेंगे ?
कब हमारी जिंदगियों की कीमत होगी और वो सुरक्षित होगी ?
कब तक दिल दहलाने वाले ये दृश्य हम देखते रहेंगे ?
कब तक अपनों को इस कदर हम खोते रहेंगे ?

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

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