बुढ़ापे का प्यार
जवानी का प्यार
बहार ही बहार
सौंदर्य का आकर्षण
प्रेमी हृदयों की तड़पन
यौवन की आकुलता
मिलन की आतुरता
उबलता हुआ जोश
भोग का संयोग
गर्म रक्त का प्रवाह
चाह और उत्साह
पर बढ़ती हुई उम्र के साथ
बदल जाते हैं हालात
जवानी का आकर्षण
बन जाता है समर्पण
तन का क्षरण हो जाता
रिश्तो मेंअपनापन आता
फिर आगे बढ़ता सिलसिला
बच्चे छोड़ देते हैं घोसला
बनते एक दूसरे की जरूरत
प्रकट होती है असली मोहब्बत
बुढ़ापे का दर्द जब सहा नहीं जाता
एक दूसरे के बिन रहा नहीं जाता
पैरों में दर्द है पत्नी चल नहीं पाती
फिर भी पति के लिए चाय बनाती
पति पत्नी के सर बाम मलता है
हमेशा उसके इशारों पर चलता है
अपना सुख-दुख आपस बांटते हैं
एक दूसरों के पैर के नाखून काटते हैं
बुढ़ापे की मजबूरी में होता है यह हाल
दोनों रखते हैं एक दूसरे का ख्याल
जब परिवार वाले कर लेते हैं किनारा
दोनों बन जाते हैं एक दूसरे का सहारा
अगर कभी हो भी जाती है खटपट
तो झगड़ा झट से जाता हैं निपट
क्योंकि दोनों ही सो नहीं पाते
बिना सुने एक दूसरे के खर्राटे
सच की उम्र का बड़ा हसीं दौर है
बुढ़ापे के प्यार मजा ही कुछ और है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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