एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 24 सितंबर 2011

मेरी परम प्रिया,जलेबी

मेरी परम प्रिया-जलेबी
---------------------------
पीत वर्णा,
वक्र बदना
कमनीय काया धारिणी,
सुंदरी!
जैसे,अग्नि तपित स्निग्ध कुंड में,
स्नानोपरांत,
रस कुंड से रसरंजित हो,
उतर आई हो,
कोई महकती हुई परी
तुम्हे देख कर
मेरे अधर,
लालायित हो जाते हैं,
करने को तुम्हारा चुम्बन
तुम्हारे सामीप्य से,
एक तृष्णा सी जग जाती है,
और तुम्हे पाने को मचल जाता है मन
तुम्हारी मिठास
देती है एक अवर्णनीय ,
तृप्ति का आभास
स्वर्णिम आभा लिए,
तुम्हारी अष्टावक्र काया
मेरे मन को,
जितना आनंद से है भिगोती
उतना सुख तुम शायद ही दे पाती,
यदि तुम कनक छड़ी सी सीधी होती
मै मधुमेह पीड़ित,
मोहित रहता हूँ,
देख कर तुम्हारी मधुरता
सब कुछ बिसरा कर,
तुम्हारे रसपान का सुख,
भोगने से वंचित नहीं रह सकता
क्योंकि तुम मनभावन,हो ही ऐसी
मेरी परम प्रिया,जलेबी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रस्तुति स्तुतनीय है, भावों को परनाम |
    मातु शारदे की कृपा, बनी रहे अविराम ||

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह भाई वाह, परम प्रिया जलेबी की अष्टावक्र काया को जिस मधुर रस में प्रस्तुत किया है उसे पढकर ही मुंह में मिठास घुल गई. बहुत ही लाजवाब,

    रामराम

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी ये परम प्रिया हमारी भी है । यहां बाज़ार में तो नही मिलती तो चलो बनायेंगे ।

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-