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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार

पति  की  अनुनय  को  धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी - बोल  कटार - गम,  सहे  चोट  मन - ढाल ||

पत्नी  पग-पग  पर  परे, पल-पल  पति  पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||


हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर  से  तेज  है,  हार   हूर  अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लाले

 चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
 तेज तड़ित तन तोड़ती,  तददिन तमक तड़ाक |

मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||

 मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव 

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