टूटती उमीदों के रिसते,
जख्मों पर ,
खोखले वादों का मरहम लगाकर ,
मानवीय संवेदनाओं के साथ खेलना ,
कब तक चलेगा ,
निराश हताश सी मानवीयता ,
अनैतिकता की बुलंद होती ,
इमारतों पर ,
अट्टहास करते ,
नैतिकता के शत्रु ,
रौदेंगे कब तक ,
चीत्कार करती मानवता ,
किसी अवतार की ,
कब तक करेगी प्रतीक्षा ,
आहों से उपजी पीडाओं का ,
क्रंदन कब तक ,
कौन बनेगा अवलंबन ,
मानवीयता का ,
धर्म के नाम पर अधर्म
की गाथा से काले होते ,
पन्ने इतिहास के ,
कौन धोएगा ,
इन यक्ष प्रश्नों को ,
कब तक रहना होगा ,
अनुत्तरित -
(यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है )
काशीपुर, उत्तराखंड
सटीक प्रश्न उठाती बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसच्चाई कहने का सबसे बढ़िया तरीका। काश हम भी सीख सकें..
जवाब देंहटाएंकाव्य का संसार देख कर बड़ी सुखद अनुभूति हुई , मेरी रचना इसका हिस्सा बनी और विद्वान् मित्रो की टिप्पणियों से मेरा रचनाकर्म सराहा गया मै इसके लिए आभारी हूँ काव्य का संसार और विस्तारित हो मेरी शुभकामनाएं
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