करें पुनर्निर्माण आओ ,
विरासतों के खँडहर का ,
भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,
हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,
नए सिरे से सवांरें,
नव ऊर्जा का संचार भरें ,
प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,
प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,
अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,
घातक स्वरुप धारण करें ,
उससे पूर्व जागृत हों ,
जागृत करें समाज को ,
स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,
मानवीयता के प्रकाश से ,
करें आलोकित धरा को ,
राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,
मिलाकर करें पुनर्निर्माण
आओ विरासतों के खँडहर का |
विरासतों के खँडहर का ,
भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,
हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,
नए सिरे से सवांरें,
नव ऊर्जा का संचार भरें ,
प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,
प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,
अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,
घातक स्वरुप धारण करें ,
उससे पूर्व जागृत हों ,
जागृत करें समाज को ,
स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,
मानवीयता के प्रकाश से ,
करें आलोकित धरा को ,
राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,
मिलाकर करें पुनर्निर्माण
आओ विरासतों के खँडहर का |
रचनाकार-विनोद भगत
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ||
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