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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

सत्तरवें जन्म दिन पर

सत्तरवें जन्म दिन पर


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीत

3 टिप्‍पणियां:

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