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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

मैं क्यों लिखता हूँ

मैं क्यों लिखता हूँ ,
सच तो यह है ,
कि मैं खुद भी नहीं जानता ,
विचारों को शब्दों में ढाल कर ,
कुछ कहने की कोशिश करता हूँ ,
मैं कुछ नया नहीं गढ़ता ,
वही जो पहले भी सुना औए लिखा होता है ,
वही सब स्मरण कराता हूँ ,
मैं नहीं जानता मेरे लिखने से क्या होगा ,
पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है ,
उसका क्या कोई सार्थक परिणाम हुआ ,
शायद नहीं ,
लोग पढ़ते रहे ,
कुछ तारीफ़ के पुल गढ़ते रहे ,
जीवन में कौन उतार पाया ,
अच्छी बाते पढने में अच्छी लगती है ,
अमल कब हो पता है ,
शायद इसीलिए मैं सोचता हूँ ,
मैं क्या और क्यों लिखता हूँ ,
पर लिखना मेरा कर्म है ,
फल की इच्छा ना करूँ ,
तो लिखना जारी रहेगा ,


रचनाकार:-विनोद भगत
काशीपुर, उत्तराखंड

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

टुकड़े

टुकड़े कितने जरुरी है ,
रोटी का हो या जमीन का ,
और कडकती ठण्ड में ,
एक अदद धूप का टुकड़ा ,
जीवन की निशानी होता है ,
पर टुकडो में बटना किसी को स्वीकार नहीं ,
फिर भी हम रोटी और जमीन के टुकड़े के लिए ,
टुकड़ों में बंट रहे है ,
एक टुकडा रोटी देने को हम तैयार नहीं ,
पर ह्रदय के टुकड़े करने में हमे महारथ हासिल है ,
टुकडा टुकडा होते हम ,
नहीं समझ पा रहे अभी भी हम ,
और कितने टुकड़ों में बटेंगे हम ,
टुकडा होने का यह खेल जारी रहेगा कब तक ,
कब सोचेंगे हम ,
नहीं जानते ,
अभी तो टुकडा टुकडा होने में व्यस्त है |

रचनाकार:- विनोद भगत

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

विरासतों

करें पुनर्निर्माण आओ ,

विरासतों के खँडहर का ,

भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,

हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,

नए सिरे से सवांरें,

नव ऊर्जा का संचार भरें ,

प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,

प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,

अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,

घातक स्वरुप धारण करें ,

उससे पूर्व जागृत हों ,

जागृत करें समाज को ,

स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,

मानवीयता के प्रकाश से ,

करें आलोकित धरा को ,

राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,

मिलाकर करें पुनर्निर्माण

आओ विरासतों के खँडहर का |

रचनाकार-विनोद भगत

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

खोखले वादे


टूटती उमीदों के रिसते,
जख्मों पर ,
खोखले वादों का मरहम लगाकर ,
मानवीय संवेदनाओं के साथ खेलना ,
कब तक चलेगा ,
निराश हताश सी मानवीयता ,
अनैतिकता की बुलंद होती ,
इमारतों पर ,
अट्टहास करते ,
नैतिकता के शत्रु ,
रौदेंगे कब तक ,
चीत्कार करती मानवता ,
किसी अवतार की ,
कब तक करेगी प्रतीक्षा ,
आहों से उपजी पीडाओं का ,
क्रंदन कब तक ,
कौन बनेगा अवलंबन ,
मानवीयता का ,
धर्म के नाम पर अधर्म
की गाथा से काले होते ,
पन्ने इतिहास के ,
कौन धोएगा ,
इन यक्ष प्रश्नों को ,
कब तक रहना होगा ,
अनुत्तरित -

(यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है )



रचनाकार:-विनोद भगत
काशीपुर, उत्तराखंड

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