पलाश के फूल
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हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
खिल कर महके,सूख,गिर गये,फिर रस्ते में
वृक्ष खाखरे के थे ,खड़े हुए जंगल में
पात काम आते थे ,दोने और पत्तल में
जब बसंत आया,तन पर कलियाँ मुस्काई
खिले मखमली फूल, सुनहरी आभा छाई
भले वृक्ष की फुनगी पर थे हम इठलाये
पर हम पर ना तितली ना भँवरे मंडराये
ना गुलाब से खिले,बने शोभा उपवन की
ना माला में गुंथे,देवता के पूजन की
ना गौरी के बालों में,वेणी बन निखरे
ना ही मिलन सेज को महकाने को बिखरे
पर जब आया फाग,आस थी मन में पनपी
हमें मिलेगी छुवन किसी गौरी के तन की
कोई हमको तोड़,भिगा,होली खेलेगा
रंग हमारा भिगा अंग गौरी के देगा
तकते रहे राह ,कोई आये, ले जाये
बीत गया फागुन, हम बैठे आस लगाये
पर रसायनिक रंगों की इस चमक दमक में
नेसर्गिक रंगों को भुला दिया है सबने
जीवन यूं ही व्यर्थ गया,रोते.हँसते में
हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
खिल कर महके,सूख,गिर गये,फिर रस्ते में
वृक्ष खाखरे के थे ,खड़े हुए जंगल में
पात काम आते थे ,दोने और पत्तल में
जब बसंत आया,तन पर कलियाँ मुस्काई
खिले मखमली फूल, सुनहरी आभा छाई
भले वृक्ष की फुनगी पर थे हम इठलाये
पर हम पर ना तितली ना भँवरे मंडराये
ना गुलाब से खिले,बने शोभा उपवन की
ना माला में गुंथे,देवता के पूजन की
ना गौरी के बालों में,वेणी बन निखरे
ना ही मिलन सेज को महकाने को बिखरे
पर जब आया फाग,आस थी मन में पनपी
हमें मिलेगी छुवन किसी गौरी के तन की
कोई हमको तोड़,भिगा,होली खेलेगा
रंग हमारा भिगा अंग गौरी के देगा
तकते रहे राह ,कोई आये, ले जाये
बीत गया फागुन, हम बैठे आस लगाये
पर रसायनिक रंगों की इस चमक दमक में
नेसर्गिक रंगों को भुला दिया है सबने
जीवन यूं ही व्यर्थ गया,रोते.हँसते में
हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंवसंत में पलाश के फूलों की शोभा सबसे निराली होती है... सच होली में पलाश के फूलों के रंग से खेलना बहुत अच्छा लगता है ..काश कृत्रिम रंगों के पीछे भागते आज हम सभी यह बात सब समझ पाते !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
nice post
जवाब देंहटाएंdhanywaad
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति, मिटटी की खुशबू लिए हुए.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं!
Nice one
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