मैं क्यों लिखता हूँ ,
सच तो यह है ,
कि मैं खुद भी नहीं जानता ,
विचारों को शब्दों में ढाल कर ,
कुछ कहने की कोशिश करता हूँ ,
मैं कुछ नया नहीं गढ़ता ,
वही जो पहले भी सुना औए लिखा होता है ,
वही सब स्मरण कराता हूँ ,
मैं नहीं जानता मेरे लिखने से क्या होगा ,
पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है ,
उसका क्या कोई सार्थक परिणाम हुआ ,
शायद नहीं ,
लोग पढ़ते रहे ,
कुछ तारीफ़ के पुल गढ़ते रहे ,
जीवन में कौन उतार पाया ,
अच्छी बाते पढने में अच्छी लगती है ,
अमल कब हो पता है ,
शायद इसीलिए मैं सोचता हूँ ,
मैं क्या और क्यों लिखता हूँ ,
पर लिखना मेरा कर्म है ,
फल की इच्छा ना करूँ ,
तो लिखना जारी रहेगा ,
फ़ल की इच्छा किये बिना ही कर्म करना सार्थक लेखन को प्रेरित करेगा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
अच्छी प्रस्तुति |कई बार ख्याल आता है कि लिखने का कारण क्या है पर उत्तर नहीं मिल पाता |
जवाब देंहटाएंआशा