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सोमवार, 24 सितंबर 2012

बढ़ने चला हूँ


आँखों में लेके एक नूर कोई,

सपनों की दुनिया सच करने चला हूँ;
अपनों के सपनों को दिल में लेकर,
दुनिया में अपना हक करने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

राहों में बाधक हैं, मुश्किलें भी हैं,
पर खुद ही हर मुश्किल से लड़ने चला हूँ,
मार्ग में सबको बस खुशियाँ परोसता,
खुशियाँ लुटाता मैं उड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

सपनों को अपने है साकार करना,
भागती इस दुनिया में दौड़ने चला हूँ;
पर्वत, पहाड़ या मिले कोई चट्टान,
हौसले का हथौड़ा ले तोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

मौका परस्त दौर में एक जज्बा लेकर,
इंसानियत की खोज अब करने चला हूँ;
अँधियारों में अपना ही "दीप" लेकर,
हवाओं का रुख भी मोड़ने चला हूँ |
मैं बढ़ने चला हूँ |

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

मैं पथिक


क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सोना तो सोना ही रहेगा


वक़्त की मार से
काला पड़ गया
मिटटी में दबा हुआ
लोहे का टुकडा
सदा सोचता था
कोई उसे मिटटी से निकाले
झाड पोंछ कर फिर से
काम आने लायक बना दे
किस्मत ने
उसे चमकते सोने का
साथ दे दिया
सोने का साथ मिलते ही
लोहा चमकने लगा
भ्रमित हो गया
अपने को
सोना समझने लगा
सपनों की
दुनिया में खोने लगा
राह से भटकने लगा  
निरंतर सोने का सानिध्य
चाहने लगा
भूल गया था
सैकड़ों हथोड़े खाया हुआ
कई बार तपाया गया
लोहे का टुकडा था
सोने के साथ कितना भी
चमक जाए 
लोहा ही रहेगा
एक दिन उसने सुन लिया
कोई कह रहा था
लोहा सोने के साथ
क्या कर रहा
तुरंत उसे याद आया
वो मात्र लोहे का टुकडा था
सोना तो सोना ही रहेगा
निरंतर चमकता रहेगा
जिसे के भी साथ रहेगा
उसकी कीमत बढ़ाएगा
सोच विचार के बाद
विनम्रता से सोने से बोला
मुझे भूलना नहीं
निरंतर साथ निभाना
दूर से ही सही
अपनी चमक से
नहलाते रहना 
ज़िन्दगी के हथोडों से
बचने का तरीका बताते रहना
कभी पथ से ना डिगने देना
मंजिल तक पहुंचाना
फिर से 
किसी लायक बन कर
किसी के काम आऊँ
ऐसी हिम्मत देते रहना 
अपना स्नेह बनाए
रखना
19-01-2012
65-65-01-12

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