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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जिनके गलत सुलूक रहे हैं।
शंख वही अब फूक रहे हैं।

भरा गन्‍दगी से अन्‍तर्मन,
वो औरों पर थूक रहे हैं।

कोयल तो आश्‍चर्यचकित है,
सारे कौवे कूक रहे हैं।

राम बने फिरते हैं अब वो,
कल तक जो शम्‍बूक रहे हैं।

निकले हैं सागर मन्‍थन को,
कभी कूप मन्‍डूक रहे हैं।

काटे गये अँगूठे फिर भी,
कहॉं निशाने चूक रहे हैं। 

रचनाकार-नागेन्‍द्र अनुज,
प्रतापगढ़ ।

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