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बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

प्रयोजन और भोजन 


आस्था में प्रभु की मंदिर गए ,
चैन मन को मिलेगा ,विश्वास था 
श्रद्धानत ,आराधना में लीन थे ,
लगा होने शांति का आभास था 
व्यस्त हम तो रहे करने में भजन ,
लोग आ पूरा प्रयोजन कर गए 
हमें चरणामृत और तुलसीदल मिला ,
लोग पा परशाद ,भोजन कर गए 

घोटू 
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 


भले खाएंगे डुबो कर चाय में ,
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 
कल सुबह होगी जलन, देखेंगे कल ,
पर पकोड़े चरपरे ही चाहिये 
उनकी ना ना बदल देंगे हाँ में पर,
नाज नखरे मदभरे ही चाहिए 
प्रेम करने में उतर जाएंगे सब ,
वस्त्र लेकिन सुनहरे ही चाहिये 

घोटू 

माथुर साहेबकेँ जन्मदिवस पर 

व्यक्तित्व आपका अति महान 
माथुर साहब ,तुमको प्रणाम 

शीतल स्वभाव ,तुम गरिमामय ,
मुख पर बिखरी  पूरनमासी 
मुस्काते ,खिले खिले हरदम ,
हो नमह नमह तुम इक्यासी 
ओ  भातृभाव  के अग्रदूत ,
हो मौन ,तपस्वी,शांत,सिद्ध 
ओ ज्ञानपीठ के मठाधीश ,
ओ दंत चिकित्सक तुम प्रसिद्ध 
तुमने कितने कोमल कपोल ,
को खोल,हृदय की पीर हरी 
हो समयसारिणी ,अनुशासित ,
तुम सदा समय के हो प्रहरी 
गरिमा की माँ ,ममता की माँ ,
है छुपी हुई तुम  माथुर में 
साक्षर स्नेह की  मूरत हो  ,
सबके प्रति प्रेम भरा उर में 
ये आलम अगर बुढ़ापे में ,
क्या होगा हाल जवानी में 
निश्चित ही आग लगा देते,
 होंगे बर्फीले पानी में  
तुम जिसका मुख छूते होंगे,
निःशब्द हुआ करती होगी 
ले जाती होगी प्रेम रोग ,
सब भुला दन्त की वह रोगी 
ये खंडहर साफ़ बताते है ,
कितनी बुलंद थी इमारत 
गायक,लायक ,नायक कर्मठ ,
तुम सबके मन की हो  चाहत 
है यही दुआ सच्चे दिल से ,
सौ वर्ष जियो तुम अविराम 
माथुर साहब ,तुमको  प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

            नारी जीवन


                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया  बचपन

उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन 

माता,पिता,भाई बहनो की , यादें  आकर  बहुत  सताए

एक पराया , बनता  अपना , अपने बनते ,सभी  पराये

नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट  जाती

नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत   आती

कभी पतिजी  बात  न माने , कभी  सास देती है ताने

कुछ न  सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने

कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन 

                                     कितना मुश्किल नारी जीवन

इसी तरह की  उहापोह में ,थोड़े  दिन पड़ता  है  तपना

फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ  लगने लगता अपना

बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन

कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन

 किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन    

                                        कितना मुश्किल नारी जीवन

बेटा ब्याह, बहू जब आती  ,पड़े सास का फर्ज निभाना

तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना

बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती

पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती

यूं ही बुढ़ापा काट जाता है  ,पढ़ते गीता और  रामायण

                                 कितना मुश्किल नारी जीवन


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मीजी का बिजली अवतार 

होती देखी जब घर घर नारी की पूजा 
लख कर महिमा कलयुग की ,प्रभु को यह सूझा 
फॉरवर्ड होती जाती नारी दिन प्रतिदिन 
करदे ना मेरे खिलाफ वह यह आंदोलन 
जितने भी अवतार लिए ,सब पुरुष रूप धर
लक्ष्मीजी को बिठा रखा है घर के अंदर 
वह नारी है ,उसको आगे लाना होगा 
लक्ष्मीजी को अब अवतार दिलाना होगा 
किया विचार,तनिक कुछ सोचा ,मन में डोले 
पर क्या करते ,जाकर लक्ष्मीजी से बोले 
सुनो लक्ष्मी धरती पर छाया अँधियारा 
आवश्यक है अब होना अवतार हमारा 
होगा दूर अँधेरा ,उजियारा लाने से 
पर मैं तो डरता हूँ पृथ्वी पर जाने से 
कृष्ण रूप धर प्रकटूं ,आफत हो जायेगी 
सेंडिल खा खा मुफ्त हजामत हो जायेगी 
राम बनूँगा ,लोग कहेंगे ,कैसा  पागल 
मान बाप की बात अरे जाता है जंगल 
गर नरसिंह बनू तो भी आफत कर देंगे 
निश्चित मुझे अजायबघर में सब धर देंगे 
मैं डरता हूँ ,सुनो लक्ष्मी ,मेरी मानो 
जरा पति के दिल के दुःख को भी पहचानो 
अबके से तो तुम ही लो अवतार धरा पर 
तुम भी दुनिया को देखो  पृथ्वी पर जाकर
सूरज सी चमको और तम को दूर भगाओ 
मेरी कमले ,कमली से बिजली बन जाओ 
मेरी मत सोचो ,मैं काम चला लूँगा 
मैं कैसे भी अपनी दाल गला लूँगा 
मगर प्रियतमे ,कभी कभी मुझ तक भी आना 
बारिश की बदली के संग मुझ से मिल जाना 
कहते कहते आंसूं की बौछार हो गयी 
पति की व्यथा देख लक्ष्मी तैयार हो गयी 
बिदा  लक्ष्मी हुईऑंख से आंसू टपके 
 पहले समुद्र से प्रकटी थी वह लेकिन अबके 
नारी थी ,उसने नारी का ख्याल किया 
ना समुद्र पर नदिया से अवतार लिया 
तो बंधे बाँध से टकरा प्रकति बिजली देवी 
किया अँधेरा दूर सभी बन कर जनसेवी 
चंद दिनों में ही फिर इतना काम बढ़ाया 
दुनिया के कोने कोने में नाम बढ़ाया 
बिजली को अवतार दिला सच सोचा प्रभु ने 
बिन बिजली के तो है सब काम अलूने 
रातों को चमका करती ,कितनी ब्यूटीफुल 
बटन दबाते ,जल जाती  ,सचमुच वंडरफुल 
बिन बिजली के तो सूनी है महफ़िल सारी 
महिमा कितनी महान ,धन्य बिजली अवतारी 
इतनी लिफ्ट मिली लेकिन फिर भी ना फूली 
वह नारी है ,अपना नारीपन ना भूली 
चूल्हे चौके में ,बर्तन, सीने धोने में 
बाहर और भीतर घर के कोने कोने में 
बिजली जी ने अपना आसन जमा लिया है 
सच पूछो  ,नारी को कितना हेल्प किया है 
उल्लू से ये तार बने विजली के वाहन 
अब दीपावली पर होता बिजली का पूजन 
इतनी जनप्रिय ,किन्तु पतिव्रता धर्म निभाती 
जो छूता ,धक्का दे उसको दूर भगाती 
जब थक जाती है तो फ्यूज चला जाता है 
भक्तों यह बिजली, वही लक्ष्मी माता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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