बुढ़ापे का कम्युनिकेशन
इस बढ़ती हुई उम्र में यूं ,
कम हुआ हमारा कम्युनिकेशन
कुछ गला हमारा बैठ गया ,
कुछ तुम भी ऊंचा सुनने लगे
पहले जब भी हम लड़ते थे
तो बोलचाल बंद हो जाती
पर अब तो ऐसा लगता है
हम रोज-रोज ही लड़ने लगे
इस तरह खत्म है भूख हुई
एक रोटी में पेट भर जाता
या तो तुम पकाना भूल गई
या फिर हम भूल गए खाना
पहले तुम करती थी फॉलो
अब हम करते तुमको फॉलो
तुम कहती इस रस्ते पर चलो
उसे रास्ते पर पड़ता जाना
जितना तुम से बन सकता है
तुम सेवा हमारी करती हो,
बढ़ता जा रहा दिनों दिन है
हमने और तुममें अपनापन
मैं जीता सहारे तुम्हारे
तुम जीती मेरे सहारे हो
देखो वृद्धावस्था लाई ,
जीवन में कितने परिवर्तन
एकदूजे का एकदूजे बिन,
अब बिलकुल काम नहीं चलता
अब प्यार हमारा या झगड़ा
थमता है इस स्टाइल में
हम एक दूजे से मुंह फेरे,
इस तरह रूठते रहते हैं,
तुम खुश अपने मोबाइल में
मैं खुश अपने मोबाइल मे
मदन मोहन बाहेती घोटू
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