अविरल जीवन
जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण करता हूँ मै पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल
मदन मोहन बाहेती'घोटू;
किताब मिली --शुक्रिया - 21
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जो तू नहीं तो ये वहम-ओ-गुमान किसका है
ये सोते जागते दिन रात ध्यान किसका है
कहां खुली है किसी पे ये वुसअत-ए -सहारा
सितारे किसके हैं ये आसमान किसका है
वुस...
10 घंटे पहले