आपकी सेवा में प्रस्तुत है--
मेरा पहला खंड-काव्य --
मेरा पहला खंड-काव्य --
आपका मार्गदर्शन मिला
बहुत बहुत आभार-
तय तो यह था...
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल
तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद
तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल
अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था
तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...
हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं
लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!
ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न
सचमुच!
तय तो यह था कि
तुम इलाज के लिए गयी थी
सो लौट आती सकुशल
परन्तु ...तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....
ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......