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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
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करोड़ों  के पास खाने को नहीं,
                 और नेता करोड़ों में खेलते
झूंठे झूंठे वादों की बरसात कर,
                 करोड़ों की भावना से खेलते
करोड़ों की लूट,घोटाले कई,
                  करोड़ों स्विस बेंक में इनके जमा
पेट फिर भी इनका भरता ही नहीं,
                 लूटने का दौर अब भी ना थमा
  सह लिया है बहुत,अब विद्रोह के,
                  लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
क्रांति का तुमने बजाय है बिगुल,
                 करोड़ों, अन्ना,तुम्हारे साथ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पोस्ट ..

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
    सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
    चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
    जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
    ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलिमे click करे

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे मए पोस्ट नकेनवाद पर आप सादर आमंत्रित हैं । धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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