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सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल ||

रविकर की प्रस्तुति

 (शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा,  कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे,  सदा बढ़े शुभ प्यार ||
   करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की,  महिमा  अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ,  लागूँ  राज- कुमार ||
Karwa Chauth
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
  सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली  चाल ||
  करवाल=तलवार  
करवा संग करवालिका,  बनी बालिका वीर |
शक्ति  पा  दुर्गा   बनी,  मनुवा  होय  अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?

 शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें,  बेगम सदा सशंक ||

  लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश  |
चौथी से ही चल रहा,  अब क्या लेना चांस ??


(महिमा )  
नारीवादी  हस्तियाँ,  होती  क्यूँ  नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके पुन: समाज ||

 मर्द कमाए लाख पण,  करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी  बिना,  डूबा  हुआ  जहाज  ||

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

दूरियॉ

वर्ष 1985 के लगभग लिखी निम्न पंक्तियों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ
विकास के युग में माना घट गयी हैं दूरियॉ ।
इन्सान से इन्सान की अब बढ गयी हैं दूरियॉ ।।
सूर्य का गोला लटकता है हर इक छत से जरूर ।
किन्तु इतने पास अब रहते नहीं है दिल हुजूर ।।
चॉद तक जाने लगे हैं यान माना बेलगाम ।
पर धरा के चॉद का अब रह गया है सिर्फ नाम ।।
संसार आकर है सिमटता हर सुबह इस मेज पर ।
क्या हुआ अपने बगल में जानेंगे पढकर खबर ।।
शोर पुर्जों का हुआ है इस कदर कुछ बेअदब ।
पंछियों का मधुर कलरव खो गया इसमें अजब ।।
अब धरा लगती खिलौना यूँ सहज हैं दूरियॉ ।
इन्सान से इन्सान की पर बढ गयी हैं दूरियॉ।।

अपहरण


अपहरण

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जो अपनी बहन के अपहरण का
 बदला लेने के लिये,
पृथ्वीराज को हरवा दे,
उसे जयचंद कहते है
और जो खुद अपने मित्र अर्जुन के साथ,
अपनी बहन सुभद्रा को   भगवा दे,
उसे श्रीकृष्ण कहते है
लोगों की सोच में,
या अपहरण अपहरण में कितना अंतर है

मदन मोहन बहेती 'घोटू;

चंदा मामा और करवाचौथ

चंदा मामा और करवाचौथ
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जब भी कभी होती है पूनम की रात
मेरे मन में उठती रह रह यह बात
चाँद और सूरज  दोनों चमकते है
राहू और केतु दोनों को डसते  है
पर सूरज  हर दिन चमकता ही रहता
और  चाँद पंद्रह दिन बढ़ता फिर घटता
अमावस  की रात को चाँद कहाँ है जाता
और चंदा बच्चों का मामा क्यों कहलाता
औरते करवा चौथ को,क्यों पूजती है चाँद को
सामने छलनी रख,क्यों देखती  है चाँद को
मनन करने पर आया कुछ ज्ञान मन में
सभी प्रश्नों का किया समाधान हमने
चाँद की शीतलता जानी पहचानी है
चन्द्रमा दुनिया का सबसे बड़ा दानी है
सूरज से रौशनी वो लेता उधर है
बांटता दुनिया को,करता उपकार है
इसी दान वीरता और परोपकार के कारण
बढ़ता ही रहता है ,जब तक कि हो पूनम
और पूर्ण होने पर,अहंकार है  आता
इसी लिए रोज़ रोज़ फिर घटता ही जाता
चाँद को केरेक्टर थोडा सा ढीला है
वैसे भी तबियत का थोडा  रंगीला है
अहिल्या के किस्से से,औरतें घबरायी
चाँद को बना लिया उनने अपना भाई
कहने लगी बच्चों से,ये चंदा मामा है
भाई का फ़र्ज़ बहन कि इज्जत बचाना है
 फिर भी कर्वाचोथ का व्रत वो करती है
चाँद और अपने बीच,चलनी रख लेती है
जिससे बस धुंधली सी शकल ही नज़र आये
रूप देख चंदा की नीयत ना ललचाये
दुखी हो पड़ा रहता ,धुत्त ,सोमरस पीकर
इसीलिए अमावास को नहीं आता धरती पर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

भ्रष्टाचार आन्दोलन के "साइड इफेक्ट"

           

बहुत सारी भीड़ है | वो देश सुधार और भ्रष्टाचार को मिटने का आन्दोलन कर रहे हैं , 
सारी सड़के जाम हैं ,
जनता बेहाल है ,
सर्कार का बुरा हाल है ,
ये समाधान है या 
कोई व्यवधान है जो 
यहाँ हर कोई परेशान है 

तभी एक एम्बुलेंस दूर से आती है , उस भीड़ में वो फंस  जाती है , मरीज की हालत गंभीर है पर कोई उसे निकलने नही दे रहा है क्यूँ की  वो समाज सेवी है और देश का सुधार कर रहें हैं |

नारें लगा रहें वो देखो 
लोगो का हुजूम बना 
और समाज चला रहे हैं 
वो जो तड़प रहा है अंदर 
देख उसे नजरे झुका रहे हैं 
न ही वो उनका सगा है 
न ही सम्बन्धी है फिर 
क्यों दिखावे में नहा रहें हैं 
तड़प रहा है वो इलाज को 
और देखो ये सब यहाँ 
भ्रष्टाचार मिटा रहे हैं |

बहुत सारी भीड़ इकट्ठी है , सरकार के खिलाफ कुछ हैं जो सच में साथ हैं और कुछ लोग दिमाग से वहा और मन से दफ्तर में हैं , जहाँ कोई आएगा घुस देके जायेगा , वो दलाल है सरकार के जिनके आँखों में हमेशा से ही पट्टी बंधी है |

सरकार के खिलाफ बन खड़ें हैं
हाथों में मशाल लिए अड़े हैं 
दिल से यहाँ पर दिमाग से वहां 
जहा घुस मिल जाएगी 
क्यों जिद कर वो 
दिखावे को पड़े हैं 
घुस खाकर पेट भरता है जिनका 
क्यों वो आम जनता के साथ 
हाथ में हाथ लिए वहा डटे हैं |

 -  दीप्ति शर्मा


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