मैं गधे का गधा ही रहा
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
पाट चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी
अपने पीतम का ' पी 'तुमने ऐसा पिया ,
रह गया 'तम' मैं, तुम रौशनी बन गयी
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम'मेरी,
और उड़ती रही,सज संवर,बन परी
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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