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बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

मुक्ती 

मैं जनम पत्रिकायें   दिखाता रहा ,
और ग्रहों की दशाएं बदलती रही 
पर दशा मेरी कुछ भी तो बदली नहीं ,
जिंदगी चलती ,वैसे ही चलती रही 
कोई ज्योतिष कहे ,दोष मंगल का है,
कोई पंडित कहे ,साढ़ेसाती चढ़ी 
कोई बोले चंदरमा ,तेरा नीच का,
उसपे राहु की दृष्टी है टेढ़ी पड़ी 
तो किसी ने कहा ,कालसर्प दोष है,
ठीक कर देंगे हम ,पूजा करवाइये 
कोई बोलै तेरा बुध कमजोर है ,
रोज पीपल पे जल जाके चढ़वाईये 
कोई बोलै कि लकड़ी का ले कोयला ,
बहते जल में बहा दो,हो जितना बजन 
दो लिटर तैल में ,देख अपनी शकल ,
दान छाया करो,मुश्किलें होगी कम 
मैं शुरू में  ग्रहों से था घबरा गया ,
पंडितों  था  इतना  डराया  मुझे 
मंहगे मंहगे नगों की अंगूठी दिला ,
सभी ने मन मुताबिक़ नचाया मुझे 
और होनी जो होना लिखा भाग्य में ,
वो समय पर सदाअपने घटता गया 
होता अच्छा जो कुछ तो उसे मुर्ख मैं ,
सब अंगूठी बदौलत ,समझता रहा 
रोज पूजा ,हवन और करम कांड  में ,
व्यर्थ दौलत मैं अपनी लुटाता रहा 
जब अकल आई तो ,अपनी नादानी पे,
खुद पे गुस्सा बहुत ,मुझको आता रहा 
उँगलियों की अंगूठी ,सभी फेंक दी ,
और करमकांड ,पूजा भी छोड़े सभी 
भ्रांतियों से हुआ ,मुक्त मानस मेरा ,
हाथ दूरी से पंडित से  जोड़े तभी 
और तबसे बहुत,हल्का महसूस मैं ,
कर रहा हूँ और सोता हूँ मैं चैन से 
रोक सकता न कोई विधि का लिखा,
जो भी घटता है,लेता उसे प्रेम से 
जबसे ज्योतिष और पंडित का चक्कर हटा ,
मन की शंकाये सारी निकलती गयी 
दूर मन के मेरे ,भ्रम सभी हो गए ,
जिंदगी जैसे चलनी थी,चलती रही 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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