एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में 

बड़ी ही रंगत थी तेरे हुस्न में ,तुम्हे देखा लाल चेहरा हो गया 
बड़ा तीखापन था तेरे हुस्न में,दिल में मेरे घाव गहरा हो गया 
बड़ी ही गर्मी थी तेरे हुस्न में,देख मन में आग सी कुछ लग गयी 
बड़ा आकर्षण था तेरे हुस्न में ,चाह मन में मिलन की थी जग गयी 
बड़ी मादकता थी तेरे हुस्न में ,देख कर के नशा हम पर छा गया 
बड़ी ही दिलकश अदाएं थी तेरी,देख करके,दिल था तुझ पर आ गया 
बड़ी चंचलता थी तेरे हुस्न में ,देख कर मन डोलने सा लग गया 
बावरा सा मन पपीहा बन गया ,पीयू पीयू बोलने सा लग गया 
बड़ा भोलापन था तेरे हुस्न में ,प्यार के दो बोल बोले,पट गयी 
बड़ी शीतलता थी तेरे हुस्न में ,मिल के तुझसे,मन में ठंडक ,पड़ गयी 
ताजगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर के ताजगी सी आ गयी 
सादगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर दीवानगी सी छा गयी 
देख ये सब इतने हम पागल हुए,हमने तुझ संग सात फेरे ले लिए 
लगा हमको ,चाँद हमने पा लिया,क्या पता था ,संग अँधेरे ले लिए 
क्या बने शौहर कि नौकर बन गए,इशारों पर है तुम्हारे नाचते 
क्या पता था ये तुम्हारी चाल थी,हमारा दिल रिझाने के वास्ते 
लुभाया था गर्मी ने जिस जिस्म की,आजकल है वो जलाने लग गयी 
तेरी कोयल सी कुहुक गायब हुई,ताने दे दे ,अब सताने लग गयी 
नज़र तीखी कटारी जो थी चुभी,बन गयी है धार अब तलवार की 
पति बन, हम पर विपत्ति आ गयी,ऐसी तैसी हो गयी सब प्यार की 
पड़ी वरमाला ,बनी जंजीर अब ,पालतू से पशु बन कर रह गए 
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में, उमर भर को बन के कैदी रह गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-