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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

बाती और कपूर

बाती और कपूर

खुद को डूबा प्रेम के रस में,
               तुम जलती हो बन कर बाती
जब तक स्नेह भरा दीपक में,
                जी भर उजियाला    फैलाती
और कपूर की डली बना मै,
                  जल कर करूं आरती ,अर्चन,
निज अस्तित्व मिटा देता  मै,
                 मेरा होता पूर्ण समर्पण
तुम में ,मुझ में ,फर्क यही है,
               तुमभी जलती,मै भी जलता
तुम रस पाकर फिर जल जाती,
               और मै जल कर सिर्फ पिघलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

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