बाती और कपूर
खुद को डूबा प्रेम के रस में,
तुम जलती हो बन कर बाती
जब तक स्नेह भरा दीपक में,
जी भर उजियाला फैलाती
और कपूर की डली बना मै,
जल कर करूं आरती ,अर्चन,
निज अस्तित्व मिटा देता मै,
मेरा होता पूर्ण समर्पण
तुम में ,मुझ में ,फर्क यही है,
तुमभी जलती,मै भी जलता
तुम रस पाकर फिर जल जाती,
और मै जल कर सिर्फ पिघलता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ढाई आखर सभी पढ़ रहे
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ढाई आखर सभी पढ़ रहे प्रेम अमी की एक बूँद हीजीवन को रसमय कर देती, दृष्टि एक
आत्मीयता की अंतस को सुख से भर देती ! प्रेम जीतता आया तबसे जगती नजर नहीं आती
थी, ...
34 मिनट पहले
bahut achchha. AAbhaar.
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