मन बिरहन का
बरस बरस कर रीते मेघा,
उमर कट गयी बरस बरस कर
बरस बरस तक ,बहते बहते,
आंसू सूखे,बरस बरस कर
मन में लेकर,आस दरस की,
रह निहारी,कसक कसक कर
हमने साड़ी,उम्र गुजारी,
यूं ही अकेले, टसक टसक कर
गरज गरज ,छाये घन काले,
बहुत सताया ,घुमड़ घुमड़ कर
आई यादों की बरसातें,
आंसू निकले ,उमड़ उमड़ कर
नयन निगोड़े,आस न छोड़े,
रहे ताकते,डगर डगर पर
मेरे सपने,रहे न अपने,
टूट गए सब,बिखर बिखर कर
ना आना था,तुम ना आये,
रही अभागन,तरस तरस कर
बरस बरस कर,रीते मेघा,
उमर कट गयी,बरस बरस कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दीप जलता रहे
-
हमारे चारों ओर केइस घने अंधेरे में समय थोड़ा ही हो भले उजेला होने
में विश्वास आत्म का आत्म पर यूं ही बना रहेसाकार हर स्वप्न सदा होता रहेअपने
हर सरल - कठिन र...
2 दिन पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।