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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

पशुवत जीवन

              पशुवत जीवन
बचपन में,
हम खरगोश की तरह होते है
नन्हे,मासूम,कोमल,मुलायम,
मुस्कराते रहते है
किलकारियां भरते है
प्यार और दुलार की,
हरी हरी घास चरते है
किशोरावस्था में,
हिरन की तरह कुलांछे लगाते है
या बारहसिंघा की तरह,
अपने सींगों पर इतराते है
और जवानी में,
कभी दूध देती गाय की तरह रंभाते है
कभी कंगारू की तरह,
 अपने बच्चों को सँभालते है
कभी शेर की तरह दहाड़ते है
कभी हाथी की तरह चिंघाड़ते है
और बुढ़ापे के रेगिस्थान में,
ऊँट की तरह,
प्यार के नखलिस्थान की तलाश करते है
लम्बी उम्र की तरह,
अपनी लम्बी गर्दन उचका उचका ,
कांटे भरी झाड़ियों में,
हरी हरी पत्तियां दूंढ ढूंढ,
अपना पेट भरते है
सदा गधों सा बोझा  ढोतें है
हम उम्र भर,
पशुवत जीवन जी रहे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. कहते हैं " आदमी भी जानवर है" "Man belongs to animal family". कुछ तो समानता होगी -आपकी कविता अच्छी है. मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.

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