प्रकृति और मानव
समंदर का खारा पानी,
प्रकृति के स्पर्श से,
सूरज की गर्मी पा,
बादल बन बरसता है
मीठा बन जाता है
सब को हर्षाता है
और वो ही शुद्ध जल,
पीता जब है मानव,
तो मानव का स्पर्श पा,
शुद्ध जल ,शुद्ध नहीं रह पाता
मल मूत्र बन कर के,
नालियों में बह जाता
प्रकृति के संपर्क से ,
बुरा भी बन जाता भला,
और मानव के संपर्क से,
भला भी जाता बिगड़ है
प्रकृति और मानव में,
ये ही तो अंतर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा
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पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1
अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा
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15 घंटे पहले
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