एक छोटी सी प्रार्थना
हे कमलनयन!
किसी कमल नयनी,सुकोमल,
सुमुखी सुंदरी के नयनों से,
मेरे नयन मिलवा दो
हे गिरिधारी!
अपने वक्श्थल पर,
द्वि गिरी धारण किये हुए,
यौवन से लदी,
किसी षोडसी कन्या से,
मेरा मिलन करवादो
हे चतुर्भुज!
किसी कोमल,कमनीय,
कमलनाल सी भुजाओं वाली,
कामिनी के करपाश में बंध कर,
मै भी चतुर्भुज हो जाऊं,एसा वर दो
हे हिरण्यमयी लक्ष्मी के नाथ,
किसी स्वर्णिम आभावाली,
स्वर्ण सुंदरी की स्वर्णिम मुस्कराहटों से,
मेरा जीवन भी स्वर्णिम कर दो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नीलगगन सा जो असीम है
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नीलगगन सा जो असीम हैशब्दों से आहत होता मन शब्दों की सीमा कब जाने,शब्द जहाँ
तक जा सकते हैं मात्र वही स्वयं को जाने ! नीलगगन सा जो असीम है अंतर का आकाश
न देख...
28 मिनट पहले
बड़ी कठिन मांग है..देखें कब पूरी कब होती है..:)
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