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शनिवार, 29 मई 2021

चार यार 

चार यार मिल बता रहे थे हाल-चाल अपना अपना उनकी परम प्यारी पत्नी उनका ख्याल रखे कितना

 पहला बोला मैं बेसब्रा हर एक काम की जल्दी थी
 मैं जो चाहू, झट हो जाए ,पर यह मेरी गलती थी 
 समझाया पत्नी ने,धीरे-धीरे, अच्छा होता सब 
 सींचो लाख,मगर फल देता तरु भी सही समय हो जब 
मैं उसकी हर बात मान कर अब रहता अनुशासन में  
यारों मैं खुश रहता हरदम, बंध कर उसके बंधन में
 
दूजा बोला कच्चा पक्का ,जो भी देता उसे पका
 बिना शिकायत, बड़े प्यार से ,वह सब कुछ लेती गटका
 मेरी बीवी है संतोषी ,जो मिलता उससे ही खुश है 
 मेरे क्रियाकलापों पर वह ,नहीं लगातीअंकुश है    
 वह कितनी भी शॉपिंग कर ले मैंने उससे कुछ ना कहा 
इतने बरस हुये पर कायम ,प्यार हमारा सदा रहा 
 
 तीजा बोला, मेरी बीवी, मेरी हेल्थ का ख्याल रखें
 पांच मील चलवा लेती है, बिना रुके और बिना थके 
 रोज दंडवत ,उठक बैठक ,प्यार प्रदर्शन करवाती
 सांस फूलती, नये ढंग से, प्राणायाम जब करवाती
 वह फिट मैं फिट, आपस में, हम दोनो ही रहते फिट है 
मैं वह करता ,जो वह कहती तो ना होती किटकिट है
 
चौथा बोला ,मेरी बीवी तो साक्षात लक्ष्मी है 
मुझे मानती वह परमेश्वर मेरे खातिर ,जन्मी है 
आधा किलो मिठाई लाकर, वह प्रसाद चढ़ाती है
एक बर्फी मुझको अर्पित कर ,सारी खुद खा जातीहै 
कहती डायबिटीज है तुमको ,मीठे की पाबंदी है
मैं जीवूं, वह रहे सुहागन, मेरे प्यार में  अंधी है 

सब बोले घर घर मिट्टी के चूल्हे , यही हकीकत है 
जैसे चलता वैसे जीने की पड़ जाती आदत है 
संतोषी बन, रहना हमको ,खुशी खुशी यूं ही जीकर
आओ, अपना गलत करे गम,थोड़ी सी दारू पीकर

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 28 मई 2021

तब और अब

जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे अब तो मतलब से होते हैं ,पहले बेमतलब होते थे 
 
एक जमाना था तू और मैं ,मिल करके हम होते थे 
सर्दी गर्मी हो या बारिश, रंगीले मौसम होते थे 
 तेरी छुअन सिहरन देती ,तेरी सांसे देती धड़कन 
 तेरी बातें मीठा अमृत ,तेरी खुशबू चंदन चंदन 
 बादल से लहराते गेसू, तेरे बड़े गजब होते थे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
भले जवान हो गई थी तू,मगर बचपना नहीं गया था पियामिलन चाव और वह आकर्षणभी नयानया था
बात बात पर तू तू मैं मैं ,हां थी कभी तो कभी ना थी नखरेनाज दिखाती रहती,मुझे सताती तू कितना थी
 तू बारिश में भीग नाचती, तेरे शोक अजब होते थे जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होते थे
 
 धीरे-धीरे समझदार तू और थोड़ा परिपक्व हो गई 
 बच्चों और घर की चिंता ही तेरे लिए महत्व हो गई तेरा प्यार ध्यान पाने में ,पहले होता मैं नंबर वन 
 अब मेरा चौथा नंबर है, सूखे सूखे ,भादौ, सावन 
 याद आते चुंबन बरसाते, तेरे प्यार लब होतेथे
जितना प्यार कभी होता था उतने झगड़े तब होतेथे 

मदन मोहन बाहेती घोटू


जाने कहां गए वो दिन 

जब भी मुझे याद है आते 
वह भी क्या दिन थे मदमाते 
जिसे जवानी हम कहते थे
 नहीं किसी का डर चिंता थी 
 एक दूजे के साथ प्यार में 
 बस हम तुम डूबे रहते थे 
 
 इतना बेसुध मेरे प्यार में 
 रहती कई बार सब्जी में 
 नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा 
 फिर भी खाता बड़े चाव से
  उंगली चाट तारीफें करता 
  मैं दीवाना ,सीधा-सादा
  
  देख तुम्हारी सुंदरता को 
 सिकती हुई तवे की रोटी 
 भी ईर्षा से थी जल जाती 
 तुमसे पल भर की जुदाई भी
  मुझको सहन नहीं होती थी
  इतना तुम मुझको तड़फाती
  
  जब तुम्हारे एक इशारे 
  पर मैं काम छोड़कर सारे
   पागल सा नाचा करता था 
   तुम्हारे मद भरे नैन के 
   ऊपर की भृकुटि न जाए तन
   मैं तुमसे इतना डरता था 
   
   जब तुम्हारे लगे लिपस्टिक 
   होठों का चुंबन मिलता था 
   मेरे होठ नहीं  फटते थे 
   ना रिमोट टीवी का बल्कि
    तुमको  हाथों में लेकर के
    तब दिन रात मेरे कटते थे 
    
    जब मैं सिर्फ तुम्हारी नाजुक 
     उंगली को था अगर पकड़ता 
    पोंची तुम देती थी पकड़ा 
    आते जाते जानबूझकर
     मुझे सताने या तड़पाने 
     तुम मुझसे जाती थी टकरा 
     
      मैं था एक गोलगप्पा खाली
      तुमने खट्टा मीठा पानी 
      बनकर मुंह का स्वाद बढ़ाया 
      बना जलेबी गरम प्यार की 
      डुबा चाशनी सी बातों में 
      तुमने मुझे बहुत ललचाया 
      
      कला जलेबी की तुम सीखी 
      बना जलेबी मेरी जब तब,
      आज हो गई हो पारंगत 
      लच्छेदार हुई रबड़ी सी 
      मूंग दाल के हलवे जैसी 
      बदल गई तुम्हारी रंगत 
      
      खरबूजे पर गिरे छुरी या
      गिरे छुरी ऊपर खरबूजा 
      कटता तो खरबूजा ही था 
      साथ उम्र के बदली दुनिया 
      किंतु सिलसिला यह कटने का 
      कायम अब भी,पहले भी था 

      मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 27 मई 2021

जाने कहां गए वो दिन 

जब भी मुझे याद है आते 
वह भी क्या दिन थे मदमाते 
जिसे जवानी हम कहते थे
 नहीं किसी का डर चिंता थी 
 एक दूजे के साथ प्यार में 
 बस हम तुम डूबे रहते थे 
 
 इतना बेसुध मेरे प्यार में 
 रहती कई बार सब्जी में 
 नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा 
 फिर भी खाता बड़े चाव से
  उंगली चाट तारीफें करता 
  मैं दीवाना सीधा-सादा
  
  देख तुम्हारी सुंदरता को 
 सिकती हुई तवे की रोटी 
 ईर्षा से थी तुमसे जलती 
 तुमसे पल भर की जुदाई भी
  मुझको सहन नहीं होती थी
  इतना तुम तड़पा या करती 
  
  जब तुम्हारे एक इशारे 
  पर मैं काम छोड़कर सारे
   पागल सा नाचा करता था 
   तुम्हारे मद भरे नैन के 
   ऊपर भृकुटि नहीं जाए तन
   मैं तुमसे इतना डरता था 
   
   जब तुम्हारे लगे लिपस्टिक 
   होठों का चुंबन मिलता था 
   मेरे होठ नहीं  फटते थे 
   ना रिमोट टीवी का बल्कि
    तुमको  हाथों में लेकर के
    तब दिन रात मेरे कटते थे 
    
    जब मैं सिर्फ तुम्हारी नाजुक 
     उंगली को था अगर पकड़ता 
    पोंची तुम देती थी पकड़ा 
    आते जाते जानबूझकर
     मुझे सताने या तड़पाने 
     तुम मुझसे जाती थी टकरा 
     
      मैं था एक गोलगप्पा खाली
      तुमने खट्टा मीठा पानी 
      बनकर मुंह का स्वाद बढ़ाया 
      बना जलेबी गरम प्यार की 
      डुबा चाशनी सी बातों में 
      तुमने मुझे बहुत ललचाया 
      
      कला जलेबी कि तुम सीखी 
      बना जलेबी मेरी जब तब,
      आज हो गई हो पारंगत 
      लच्छेदार हुई रबड़ी सी 
      मूंग दाल के हलवे जैसी 
      बदल गई तुम्हारी रंगत 
      
      खरबूजे पर गिरे छुरी या
      गिरे छुरी ऊपर खरबूजा 
      कटता तो खरबूजा ही था 
      साथ उम्र के बदली दुनिया 
      किंतु सिलसिला यह कटने का 
      कायम अब भी,पहले भी था 

      मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 26 मई 2021

घोटू के पद

घोटू ,मैंने तय कर लीना

सोच सदा 'पॉजिटिव ' रखना खुशहाली से जीना
 
जल्दी उठ कर ,पानी ,नीबू शहद मिला कर पीना

मीठा देख नहीं ललचाना ,खाना चीज तली  ना  

रोज घूमना ,जब तक तन पर ,ना आ जाय पसीना

प्राणायाम ,योग करने में ,रखना कोई कमी ना

मोहमाया तज,कर हरी सुमिरन,भक्ति प्रेम रस पीना

होनी ,होना ,रोक न पाया ,अब तक कोई ,कभी ना

जियें  सौ बरस  ,करें सेंचुरी  ,पर छूटे मस्ती ना

घोटू  मैंने तय कर लीना

'घोटू '

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