चार यार
चार यार मिल बता रहे थे हाल-चाल अपना अपना उनकी परम प्यारी पत्नी उनका ख्याल रखे कितना
पहला बोला मैं बेसब्रा हर एक काम की जल्दी थी
मैं जो चाहू, झट हो जाए ,पर यह मेरी गलती थी
समझाया पत्नी ने,धीरे-धीरे, अच्छा होता सब
सींचो लाख,मगर फल देता तरु भी सही समय हो जब
मैं उसकी हर बात मान कर अब रहता अनुशासन में
यारों मैं खुश रहता हरदम, बंध कर उसके बंधन में
दूजा बोला कच्चा पक्का ,जो भी देता उसे पका
बिना शिकायत, बड़े प्यार से ,वह सब कुछ लेती गटका
मेरी बीवी है संतोषी ,जो मिलता उससे ही खुश है
मेरे क्रियाकलापों पर वह ,नहीं लगातीअंकुश है
वह कितनी भी शॉपिंग कर ले मैंने उससे कुछ ना कहा
इतने बरस हुये पर कायम ,प्यार हमारा सदा रहा
तीजा बोला, मेरी बीवी, मेरी हेल्थ का ख्याल रखें
पांच मील चलवा लेती है, बिना रुके और बिना थके
रोज दंडवत ,उठक बैठक ,प्यार प्रदर्शन करवाती
सांस फूलती, नये ढंग से, प्राणायाम जब करवाती
वह फिट मैं फिट, आपस में, हम दोनो ही रहते फिट है
मैं वह करता ,जो वह कहती तो ना होती किटकिट है
चौथा बोला ,मेरी बीवी तो साक्षात लक्ष्मी है
मुझे मानती वह परमेश्वर मेरे खातिर ,जन्मी है
आधा किलो मिठाई लाकर, वह प्रसाद चढ़ाती है
एक बर्फी मुझको अर्पित कर ,सारी खुद खा जातीहै
कहती डायबिटीज है तुमको ,मीठे की पाबंदी है
मैं जीवूं, वह रहे सुहागन, मेरे प्यार में अंधी है
सब बोले घर घर मिट्टी के चूल्हे , यही हकीकत है
जैसे चलता वैसे जीने की पड़ जाती आदत है
संतोषी बन, रहना हमको ,खुशी खुशी यूं ही जीकर
आओ, अपना गलत करे गम,थोड़ी सी दारू पीकर
मदन मोहन बाहेती घोटू