कर्मक्षेत्र -कुरुक्षेत्र
जीवन में जंग होती अक्सर,
जर,जमीन का हो चक्कर
सगे और सम्बन्धी कितने,
तुमसे लड़ने को तत्पर
भ्राता दुर्योधन हठ धर्मी ,
जिद है सत्ता पाने की
घर घर पर होती महाभारत,
ये है रीत जमाने की
कई शकुनी,भड़काने को,
फेंक रहे उलटे पासे
धृतराष्ट्र भी ,पुत्र मोह में,
बंद रखे ,अपनी आँखें
भरी सभा,रो रही द्रोपदी,
चीरहरण इज्जत का है
तो फिर कौन रोक सकता है,
युद्ध महाभारत का है
कर्मक्षेत्र ही कुरुक्षेत्र है,
भले बुरे की जंग छिड़ी
सत्य असत्य आज दोनों की,
आपस में है फ़ौज भिड़ी
अधिकार की इस लड़ाई में,
लड़ना पड़ता,जीवन भर
देख सामने ,कुछ अपनों को,
शस्त्र फेंकतें है कायर
तुम अर्जुन बन,कृष्ण चन्द्र को ,
बना सारथी ,पास रखो
तुम अपने गांडीव ,बाहुबल,
पर पूरा विश्वास रखो
कृष्ण साथ है,राह दिखाते,
ध्वज पर बैठे हनुमत है
तो समझो इस महासमर में,
जीत तुम्हारी निश्चित है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
5 घंटे पहले