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रविवार, 9 मार्च 2025

नया सवेरा 

चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा कल फिर ,नया एक सवेरा 
प्राची में फिर से, प्रकटेगा सूरज
 चमकेगी किरणें ,मिटेगा अंधेरा 

बादल गमों के, बिखर जाएंगे सब 
खुशी के उजाले, नजर आएंगे अब 

वृक्षों में पत्ते ,विकसेंगे फिर से ,
चहचहाते पंछी, करेंगे बसेरा 
चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा फिर कल, नया एक सवेरा 

आशा के पौधे, पनपेंगे फिर से ,
आएगा प्यारा ,बहारों का मौसम 
महकेगी बगिया ,कलियां खिलेगी,
 गूंजेगा फिर से , भ्रमरों का गुंजन

 गुलशन हमारा, गुलजार होगा
 फिर से सुहाना ,यह संसार होगा 

शुभ आगमन होगा, अच्छे दिनों का
 बरसाएगा सुख ,किस्मत का फेरा 
चलो जिंदगी की, एक रात गुजरी,
आएगा कल फिर,नया एक सवेरा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 8 मार्च 2025

कबूतर को दाना 


 खिलाते जो हम हैं कबूतर को जाना 

एक दिन हमारे दिल ने यह जाना 

हम जो ये सारा करम कर रहे हैं 

जिसे सोचते हम धरम कर रहे हैं 

धर्म ऐसा कैसा कमा हम रहे हैं 

सभी को निठल्ला बना हम रहे हैं 

जिन्हें पेट भरने ,कमाने को दाना 

सवेरे को उड़कर के पड़ता था जाना

उन्हें पास मिल जाता है ढेरों दाना 

मुटिया रहे जिसको खा वो रोजाना 

खिलाने का दाना,करम आपका यह 

धर्म का नहीं है, करम पाप का यह

हुए जा रहे हैं आलसी सब कबूतर 

फैला रहे गंदगी घर-घर जाकर

मानो न मानो मगर सच यही है

इनकी नस्ल आलसी हो रही है


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुढ़ापे का प्यार 

जवानी का प्यार 
बहार ही बहार 
सौंदर्य का आकर्षण 
प्रेमी हृदयों की तड़पन 
यौवन की आकुलता 
मिलन की आतुरता 
उबलता हुआ जोश 
भोग का संयोग 
गर्म रक्त का प्रवाह 
चाह और उत्साह 
पर बढ़ती हुई उम्र के साथ
 बदल जाते हैं हालात 
जवानी का आकर्षण 
बन जाता है समर्पण 
तन का क्षरण हो जाता 
रिश्तो मेंअपनापन आता 
फिर आगे बढ़ता सिलसिला 
बच्चे छोड़ देते हैं घोसला
 बनते एक दूसरे की जरूरत 
प्रकट होती है असली मोहब्बत
बुढ़ापे का दर्द जब सहा नहीं जाता
 एक दूसरे के बिन रहा नहीं जाता 
पैरों में दर्द है पत्नी चल नहीं पाती 
फिर भी पति के लिए चाय बनाती 
पति पत्नी के सर बाम मलता है 
हमेशा उसके इशारों पर चलता है 
अपना सुख-दुख आपस बांटते हैं 
एक दूसरों के पैर के नाखून काटते हैं
बुढ़ापे की मजबूरी में होता है यह हाल 
दोनों रखते हैं एक दूसरे का ख्याल 
जब परिवार वाले कर लेते हैं किनारा 
दोनों बन जाते हैं एक दूसरे का सहारा 
अगर कभी हो भी जाती है खटपट 
तो झगड़ा झट से जाता हैं निपट 
क्योंकि दोनों ही सो नहीं पाते 
बिना सुने एक दूसरे के खर्राटे 
सच की उम्र का बड़ा हसीं दौर है 
बुढ़ापे के प्यार मजा ही कुछ और है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

क्या आपने बासीपन इंजॉय किया है?

 रात भर निद्रा ले और करके आराम
सुबह उठने सुबह उठने पर प्यारी सी थकान 
सुबह सुबह आती हुई आलस भरी उबासी 
जब तन वदन सब कुछ हो बासी 
बदन तोड़ती हुई मीठी सी अंगड़ाई 
ओंठो को फैला कर आती हुई जमहाई 
बिस्तर को नहीं छोड़ने का मोह 
दफ्तर और काम पर जाने की उहापोह 
बोझिल सी आंखें को सहलाना,मलना
धीरे-धीरे उठकर के अलसा कर चलना गरम-गरम चाय की चुस्ती की तलब 
रोज-रोज सवेरे होता है यह सब 
क्या आपने कभी बासीपन एंजॉय किया है?
बासी ओंठो से बासी ओंठो का चुंबन लिया है?

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

एक भला आदमी चला गया
वो कितनो को ही रुला गया 

बुरा नहीं था,अच्छा था वो 
कर्म वचन से,सच्चा था वो 
करता सद् व्यवहार सभी से
मन में रखता प्यार सभी से
नहीं किसी से राग द्वेष था
कर्मवीर था,वो विशेष था
स्वाभिमान से भरा हुआ था 
पाप कर्म से डरा हुआ था
आस्तिक,धार्मिक ईश भक्त था
 सिद्धांतों में जरा सख्त था 
 शुभ संस्कार में पला गया
 एक भला आदमी चला गया 

पढ़ा लिखा था और था ज्ञानी 
रहती सदा संतुलित वाणी 
मधुर शांत उसका स्वभाव था
सबके ही प्रति प्रेम भाव था 
की न किसी की कभी बुराई
ढूंढा करता था अच्छाई 
ना पड़ता कोई विवाद में 
मिलजुल रहता, सभी साथ में
उसने सबको साध रखा था 
परिवार को बांध रखा था 
पर कुछ हाथों छला गया 
एक भला आदमी चला गया 

मधु भाषी था ,व्यावहारिक था 
सबसे मिलता ,सामाजिक था 
धार्मिक और सदाचारी था 
यारों से रखता यारी था 
जिया सदा सात्विक जीवन 
बहुत साफ और निश्छल था मन 
लोगों के ह्रदयों में बस कर 
जीवन जीया ,उसने हंसकर 
लेख नीयति का पूरा करने 
उसको बुला लिया ईश्वर ने 
चलता फिरता भला गया 
एक भला आदमी चला गया

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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