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शनिवार, 1 दिसंबर 2018

वक़्त गुजारा खुशहाली में 

जीवन की हर एक पाली में 
वक़्त गुजारा खुशहाली  में 

होती सुबह ,दोपहर ,शाम 
यूं ही कटती उमर  तमाम 
हर दिन की है यही कहानी 
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी 
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में  बँटी  उमर  है 
बचपन यौवन और बुढ़ापा 
सबके ही जीवन में आता 
मुश्किल से  मिलता यह जीवन  
इसका सुख लो हरपल हरक्षण 
 रिश्ता बंधा  चाँद संग  ऐसा 
सुख दुःख  घटे बढे इस जैसा 
हर मुश्किल से लड़ते जाओ 
शीतल  चन्द्रकिरण  बरसाओ 
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं  हरियाली में 
जीवन की हरेक पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 
बचपन की पाली 
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जब मैं था छोटा सा बच्चा 
सबके मन को लगता अच्छा 
सुन्दर सुन्दर सी  ललनाये 
गोदी रहती  मुझे  उठाये 
चूमा करती थी गालों को 
सहलाती मेरे बालो को 
ना चिंताएं और ना आशा 
आती थी बस दो ही भाषा 
एक रोना  एक हंसना प्यारा 
काम करा देती थी सारा 
हर लेती थी सारी  पीड़ा 
मोहक होती थी हर क्रीड़ा 
भरते हम,हंस हंस किलकारी 
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी 
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं 
इस जूवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं खुशहाली में 
जवानी की पाली 
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बचपन बीता ,आई जवानी 
जीवन की यह उमर सुहानी 
खुशबू और बहार का मौसम 
मस्ती और प्यार का मौसम 
देख कली तन,मादक,संवरा 
मेरे मन का आशिक़ भंवरा 
उन पर था मँडराया  करता
अपना प्यार लुटाया  करता 
जुल्फें सहला ललनाओं की 
चाह रखी  ,बंधने बाहों की 
साथ किसी के  बसा गृहस्थी 
थोड़े दिन तक मारी मस्ती 
फिर प्यारे बच्चों का पालन 
वो ममत्व और वो अपनापन 
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में 
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में 
बुढ़ापे की पाली
------------------ 
साठ  साल का रास्ता नापा 
गयी  जवानी,आया बुढ़ापा 
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने 
बची सिर्फ अनुभव की केसर 
बच्चे उड़े ,बसा अपने  घर 
अब न पारिवारिक चितायें 
मस्ती में बस  वक़्त  बितायें 
समय ही समय खुद के खातिर 
पर अब ना  उतना चंचल दिल 
धुंधली नज़रों से  अब  यार
कर न पाए उनका दीदार 
ललना बूढ़ा बैल ना  पाले 
अंकल कहे ,घास ना डाले 
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में 
इस जीवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
   

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

मेरा जीवन भर का दोस्त -चाँद 

चाँद से मेरा रिश्ता है पुराना 
बचपन में उसे कहता था चंदामामा 
मेरी जिद पर ,मम्मी के बुलावे पर ,
वो मुझ संग खेलने ,पानी के थाली में आता था 
मेरे इशारों पर ,हिलता डुलता था ,
नाचता था ,हाथ मिलाता था 
और जब जवानी आयी तो बिना मम्मी को बताये 
हमने कितनी ही चन्द्रमुखियों से नयन मिलाये 
और फिर एक कुड़ी फंस  गयी 
'तू मेरा चाँद ,मैं तेरी चांदनी कहने वाली ,
मेरे दिल में बस गयी 
वक़्त के साथ उस चंद्रमुखी ने 
हमें एक चाँद सा बेटा दिया ,
फिर एक चन्द्रमुख बेटी आयी 
और मेरे घरआंगन में ,चांदनी मुस्करायी 
चांदनी की राह में ,कई रोड़े ,बादलों से अड़े 
सुख और दुःख ,
कभी कृष्णपक्ष के चाँद की तरह घटे ,
कभी शुक्लपक्ष के चाँद की तरह बढ़े 
जिंदगी के आकाश में कई चंद्रग्रहण आये ,
कई मुश्किलों में फँसा 
कभी राहु ने डसा ,कभी केतु ने डसा 
और फिर शुद्ध हुआ 
समय के साथ वृद्ध हुआ 
और चाँद के साथ ,मेरी करीबियत और बढ़ गयी है ,
बुढ़ापे की इस उमर में 
बचपन में थाली में बुलाता था और अब,
चाँद खुद आकर बैठ गया है मेरे सर में 
बचे खुचे उजले बालों की बादलों सी ,चारदीवारी बीच ,
जब मेरी चमचमाती चंदिया चमकती है 
बीबी सहला कर मज़े लेती है ,
पर आप क्या जाने मेरे दिल पर क्या गुजरती है 
जब चंद्रमुखिया ,'हाई अंकल  कह कर पास से  निकलती है 

घोटू 

अचानक क्यों ?

शादी के बाद शुरु शुरू में ,
हम पत्नी को कभी डार्लिंग,कभी गुलबदन 
कभी 'हनी ' कह कर बुलाया करते थे 
और इस तरह अपना प्यार जताया करते थे 
पर वक़्त के साथ ;ढले  जज्बात 
एक दुसरे का नाम लेकर करने लगे बात 
पर इस सत्योत्तर की उम्र में ,एक पार्टी में ,
जब हमने उन्हें 'हनी 'कह कर पुकारा 
तो वो चकरा  गयी ,उन्हें लगा प्यारा 
घर आकर उनसे गया नहीं रहा 
बोली ऐसा आज मुझमे तुमने क्या देखा ,
जो इतने वर्षों बाद 'हनी 'कहा 
देखो सच सच बताना 
तुम्हे हमारी कसम,कुछ ना छुपाना 
हमने कहा ,सच तो ये है डिअर 
हमारी उमर हो रही है सत्योत्तर 
कभी  कभी याददास्त छोड़ देती है साथ 
कोशिश करने पर भी तुम्हारा नाम नहीं आरहा था याद 
सच तो ये है कि सोचते सोचते ,रह रह कर 
हमने तुम्हे तब पुकारा था 'हनी 'कह कर 
तुम तो यूं भी हमारे प्यार में सनी हो 
हमारे मन भाती ,मीठी सी 'हनी 'हो 

घोटू  
बीबियों का इकोनॉमिक्स 

सुनती हो जी 
बाजार जा रहा हूँ ,
कुछ लाना क्या ?
हाँ ,एक पाव काजू ,
एक पाव बादाम 
और एक पाव किशमिश ले आना 
मुझे गाजर का हलवा है बनाना 
पति सारा मेवा ले आया 
पांच दिन बाद उसे याद आया  
पर बीबीजी ने गाजर का हलवा नहीं चखाया 
वो बोला उस दिन सात सौ के ड्राय फ्रूट मगाये थे 
गाजर का हलवा नहीं बनाया 
पत्नीजी बोली अभी गाजर बीस रूपये किलो है ,
पंद्रह की हो जायेगी ,तब बनाउंगी 
चार किलो में बीस रूपये बचाऊंगी 
ऐसी होती है औरतों की इकोनॉमिक्स ,
सात सौ का मेवा डालेंगी
पर गाजर सस्ती होने के इन्तजार में ,
हलवा बनाना टालेंगी  
और इस तरह  बीस रूपये बचालेंगी 

घोटू 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

       कार्तिक के पर्व 

धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत 
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक 
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन 
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन 
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की 
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की 
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका 
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका 
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते 
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते 
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन 
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन 
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन 
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण 
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन 
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण 
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा 
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का 
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर 
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर 
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे 
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे 
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित 
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित 
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये 
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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