वक़्त गुजारा खुशहाली में
जीवन की हर एक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में
होती सुबह ,दोपहर ,शाम
यूं ही कटती उमर तमाम
हर दिन की है यही कहानी
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में बँटी उमर है
बचपन यौवन और बुढ़ापा
सबके ही जीवन में आता
मुश्किल से मिलता यह जीवन
इसका सुख लो हरपल हरक्षण
रिश्ता बंधा चाँद संग ऐसा
सुख दुःख घटे बढे इस जैसा
हर मुश्किल से लड़ते जाओ
शीतल चन्द्रकिरण बरसाओ
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं हरियाली में
जीवन की हरेक पाली में
सदा रहा मैं खुशहाली में
बचपन की पाली
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जब मैं था छोटा सा बच्चा
सबके मन को लगता अच्छा
सुन्दर सुन्दर सी ललनाये
गोदी रहती मुझे उठाये
चूमा करती थी गालों को
सहलाती मेरे बालो को
ना चिंताएं और ना आशा
आती थी बस दो ही भाषा
एक रोना एक हंसना प्यारा
काम करा देती थी सारा
हर लेती थी सारी पीड़ा
मोहक होती थी हर क्रीड़ा
भरते हम,हंस हंस किलकारी
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं
इस जूवन की हर पाली में
सदा रहा मैं खुशहाली में
जवानी की पाली
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बचपन बीता ,आई जवानी
जीवन की यह उमर सुहानी
खुशबू और बहार का मौसम
मस्ती और प्यार का मौसम
देख कली तन,मादक,संवरा
मेरे मन का आशिक़ भंवरा
उन पर था मँडराया करता
अपना प्यार लुटाया करता
जुल्फें सहला ललनाओं की
चाह रखी ,बंधने बाहों की
साथ किसी के बसा गृहस्थी
थोड़े दिन तक मारी मस्ती
फिर प्यारे बच्चों का पालन
वो ममत्व और वो अपनापन
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में
बुढ़ापे की पाली
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साठ साल का रास्ता नापा
गयी जवानी,आया बुढ़ापा
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने
बची सिर्फ अनुभव की केसर
बच्चे उड़े ,बसा अपने घर
अब न पारिवारिक चितायें
मस्ती में बस वक़्त बितायें
समय ही समय खुद के खातिर
पर अब ना उतना चंचल दिल
धुंधली नज़रों से अब यार
कर न पाए उनका दीदार
ललना बूढ़ा बैल ना पाले
अंकल कहे ,घास ना डाले
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में
इस जीवन की हर पाली में
सदा रहा मैं खुशहाली में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '