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सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

धुवाँ धुंवा आकाश हो गया

 

धुंवा धुंवा आकाश हो गया

कहीं किसी ने फसल काट कर,अपना सूखा खेत जलाया
आतिशबाजी  जला किसी ने ,दिवाली  त्योंहार  मनाया
हवा हताहत हुई इस तरह ,मुश्किल  लेना  सांस हो गया
                                           धुवा धुंवा आकाश हो गया
बूढ़े बाबा ,दमा ग्रसित थे ,बढ़ी सांस की  उन्हें  बिमारी
दम सा घुटने  लगा सभी का, हवा हो गयी इतनी भारी
जलने लगी किसी की आँखे ,कहीं हृदय  आघात हो गया
                                          धुंवा धुंवा आकाश हो गया
ऐसा घना धुंधलका छाया ,दिन में लगता शाम हो गयी
तारे सब हो गए नदारद , शुद्ध  हवा बदनाम  हो गयी
अपनी ही लापरवाही से ,अपनो को ही  त्रास हो गया
                                     धुंवा धुंवा आकाश हो गया
हवा हुई इतनी  जहरीली  ,घर घर फ़ैल गयी बिमारी
छेड़छाड़ करना प्रकृति से ,सचमुच हमें पड़ रहा भारी
ऐसी आग लगी मौसम में ,कितना बड़ा विनाश हो गया
                                         धुंवा धुंवा आकाश हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

जादूगर सैंया

पहले कहते चख लेने दो ,
फिर कहते  हो छक लेने दो,
ऊँगली पकड़,पकड़ना पोंची ,
            कला कोई ये तुमसे  सीखे 
कभी मुझे ला देते जेवर ,
कभी कलाकन्द,मीठे घेवर ,
पल में मुझे पटा लेते हो ,
             क्या दिखलाऊँ तेवर तीखे 
तुम रसिया हो,मन बसिया हो,
मेरे प्रियतम और पिया हो ,
मेरा जिया चुराया तुमने ,
            तुम मालिक हो मेरे जी के 
तुम बिन साजन,ना लगता मन,
रहे तड़फता मेरा जीवन 
तुम्हारे बन्धन में बंध कर,
            सारे बन्धन  लगते फीके 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

दो पन्नो से ज्यादा ...

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???




दो बहने


एक हरी नाजुक पत्ती थी ,
खुली हवा में इठलाती थी 
नीलगिरी के पर्वत पर वह ,
मुस्काती थी,इतराती थी 
हराभरा सुन्दर प्यारा था ,
उसका रूप बड़ा मतवाला 
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हो गया काला 
उस काया में अरमानो का ,
अब भी रक्त जमा लगता है 
जो कि गरम पानी में घुलमिल,
चाय का प्याला बनता है 
उसका स्वाद बड़ा प्यारा है,
रोज मोहती है सबका मन 
औरो को सुख देना ,उसने,
बना लिया है अपना जीवन 
और उसकी एक और बहन थी,
हरी भरी ,नाज़ुक ,सुन्दर सी 
लोग उसे मेंहदी कहते थे ,
पाने प्यार किसी का तरसी 
उसकी भी तक़दीर वही थी ,
गयी इश्क़ में वो भी मारी 
प्यार उसे भी रास न आया ,
यूं ही कुचली गयी बिचारी 
वो टूटी ,उसका दिल टूटा ,
हाल हुआ यों दीवानो सा 
गुमसुम पिसी पिसी काया में,
रक्त  छुपा है अरमानो का 
उसकी दबी कामना अब भी ,
साथ किसी का जब पाती है 
गोर हाथों में रच कर के ,
रंग गुलाबी ले आती है  
हरी भरी इन दो बहनो  को,
साथी मिल ना पाया मन का  
तो औरों को सुख देना ही ,
लक्ष्य बना इनके जीवन का 
 परम सनेही ,दोनों इनका ,
संग सभी को सुख पहुंचाता 
एक चुस्ती फुर्ती देती है ,
स्वाद रोज जिसका मन भाता 
और दूसरी ,हाथों में  सज,
सुंदरता की शान बढ़ाती 
शादी और सभी पर्वों पर ,
हाथ सुहागन के रच जाती 
इनका जो जीवन अपूर्ण था ,
उसे पूर्ण ये कर लेती है 
होठों या  हाथों पर  लग कर ,
मन में खुशियां भर लेती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैंने उमर काट दी बाकी


मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 
अगर खुदी में रहता खोया 
तनहाई  में करता  रोया 
डूबा रह  पिछली यादों में 
यूं ही घुटता  ,अवसादों में 
अपना सब सुख चैन गमाता 
बस,अपने मन को तड़फाता 
मैंने सोचा ,इससे बेहतर 
हालातों से समझौता कर 
तू जीवन का सुख ले हर पल,
बिना किये कोई गुस्ताखी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताकाझांकी 
मैंने अपना बदल नज़रिया 
बड़े चैन का जीवन जिया 
खुश रह बाकी उमर बिताई 
हर बुराई में थी अच्छाई 
फिर कुछ सच्चे दोस्त मिल गए 
बीराने  में पुष्प  खिल  गए 
उनके संग में सुख दुःख बांटे 
दूर  किये  जीवन सन्नाटे 
सबसे हिलमिल प्रेम जताया ,
बिना किये कुछ टोकाटाकी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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