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सोमवार, 13 जुलाई 2015

ग्रास रुट वर्कर

          ग्रास रुट वर्कर

ये हरे भरे मखमली लॉन ,जो नज़र  आ  रहे है सुन्दर
इनकी ये रौनक,चमक दमक,सब टिकी हमारे ही बल पर 
वो सत्ता पर आसीन हुए ,हम ही लाये है चुनवा  कर
भूले भटके ही मुश्किल से , वो लेने आते कभी खबर
वो राज कर रहे महलों में,हम भटक  रहें है सड़कों पर
फिर भी सेवा को हम तत्पर,हम ग्रास रुट के है वर्कर
 कर बड़ी रैलियां नेताजी  ,जब हाथ जोड़ मुस्काते है
झूंठे  वादे कर ,जनता को ,मीठे सपने दिखलाते है
इतनी जनता जो आती है ,हम ही  वो भीड़ जुटाते है  
करवाते जयजयकार और हम ही ताली बजवाते है
भूले भटके कोई नेता ,तारीफ़ हमारी देता कर
हम उसमे ही खुश हो जाते ,हम ग्रासरूट के है वर्कर
ये कौम मगर नेताओं की ,सत्ता पा हमें भुलाती है
होने लगता मौसम उजाड़ तब याद हमारी आती है
जाने लगती है जब बहार  ,तब याद हमारी आती है
आने वाला होता चुनाव , तब याद हमारी आती है
हम ही दिलवाते उन्हें वोट ,फिर गावों में घर घर जाकर
वो जीत भुला देते हमको, हम ग्रास रुट के है वर्कर
वो पांच साल मे एक बार ,अपना चेहरा है दिखलाते
वो करे प्रदर्शन हम जाते,पोलिस के डंडे हम खाते
मुश्किल से ही छोटे मोटे ,उनसे कुछ काम करा पाते 
गांववाले कहते हमको ,नेताजी,हम खुश हो जाते
वो करे खेल ,हम भरें जेल ,और भटका करते है दर दर
फिर भी हम नहीं बदलते दल,हम ग्रास रुट के है वर्कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 11 जुलाई 2015

अलग अलग राधायें

            अलग अलग राधायें

कोई अपना आपा खोती ,तो कोई तृप्त रहती ,धापी
हर एक राधा के जीवन में ,चलती रहती  आपाधापी 
कोई राधा यमुना तट पर,कान्हा संग रास रचाती है
रहती है व्यस्त कोई घर का ,सब कामकाज निपटाती है
है नहीं जरूरी हर राधा को नाच नाचना  आना है 
तुम उसे नाचने  की बोलो ,तो देती बना बहाना है
कोई राधा ना नाचेगी , बतलाती  टेढ़ा  है  आँगन
कोई राधा तब नाचेगी ,जब तेल मिले उसको नौ मन 
यदि नहीं नाचने का उसके ,मन में जो अटल इरादा है
तो कई बहाने बना बना ,बस नहीं नाचती राधा  है
यमुना तट ,कृष्ण बुलाते है ,मुरली की ताने बजा बजा
 खूंटी ताने सोती रहती  ,राधा निद्रा का लिए  मज़ा
राधा की अलग अलग धारा ,राधा राधा में है अंतर
कोई को विरह वेदना है, कोई बैठी देखे पिक्चर
कोई प्यासी है तो कोई बरिस्ता में जा पीती  है कॉफी
हर एक राधा के जीवन में ,चलती रहती आपाधापी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ थोड़ी सी करवट लें

          आओ थोड़ी सी करवट लें

चित्त पड़े चित नहीं लग रहा ,थोड़ा अपना ध्यान पलट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें          
रहे देखते आसमान को,लगा टकटकी,आस लगाए
ऊपरवाला कुछ  सुध ले ले,अपनी कृपासुधि बरसाए
लेकिन उसने ध्यान दिया ना,रहे कब तलक ऐसे लेटे
दांयें बाएं करवट लेकर ,अपने अगल   बगल  भी  देखें
कई बार अपना मनचीता ,मिल जाता है आसपास  ही ,
उसको  खोजें और टटोलें ,उसके आने   की आहट   लें
                                      आओ  थोड़ी सी करवट  लें
कई बार ऐसा  होता  है,घर में छोरा ,गाँव   ढिंढोरा
इसीलिये ये आवश्यक है,आस पास भी देखें थोड़ा
आस लगा कर देख रहें है,मन में जिसके सपने प्यारे
बैठी हो वो ऋद्धि सिद्धि ,अगल बगल ही ,पास तुम्हारे
सीधे पड़े लगी है दुखने ,अब तो कमर ,नींद ना आती,
शायद पलट जाय किस्मत ही ,कुछ परिवर्तन,हम झटपट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें
सिमटे,सिकुड़ रहें क्यों लेटे ,थोड़ा हाथ पैर फैलाएं
मिल सकते है हमको कितने,मोती बिखरे दांयें बांयें
सीमित बंधे हुए बंधन में ,रहना  बाधक है प्रगति में
कुछ  करके दिखलाना हो तो,रखें हौसला अपने जी में
रहें न कूपमण्डूकों जैसे , बाहर निकले हम कुवें से ,
है विशाल संसार,निकल कर,इसकी भी तो ज़रा झलक लें
                                          आओ थोड़ी सी करवट लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 8 जुलाई 2015

बिगड़े रिश्ते

          बिगड़े रिश्ते

कई बार ,
सहेजे हुए गेहूं में भी घुन लग  जाते है
पिसे हुए आटे  में, कीड़े  पड़  जाते  है
संभाली हुई दालों में ,फफूंद लग  जाती है 
पर उन्हें हम फेंकते नहीं,
साफ कर,छान कर ,कड़क धूप  देते है
और फिर से सहेज लेते है
इसी तरह ,
जब आपसी रिश्तों में ,
शक के कीड़े और स्वार्थ का घुन लगता है
तो उन्हें ,प्यार की धूप देकर
और सौहार्द की चलनी से छान ,
फिर से सहेजा जा सकता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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