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शनिवार, 11 जुलाई 2015

आओ थोड़ी सी करवट लें

          आओ थोड़ी सी करवट लें

चित्त पड़े चित नहीं लग रहा ,थोड़ा अपना ध्यान पलट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें          
रहे देखते आसमान को,लगा टकटकी,आस लगाए
ऊपरवाला कुछ  सुध ले ले,अपनी कृपासुधि बरसाए
लेकिन उसने ध्यान दिया ना,रहे कब तलक ऐसे लेटे
दांयें बाएं करवट लेकर ,अपने अगल   बगल  भी  देखें
कई बार अपना मनचीता ,मिल जाता है आसपास  ही ,
उसको  खोजें और टटोलें ,उसके आने   की आहट   लें
                                      आओ  थोड़ी सी करवट  लें
कई बार ऐसा  होता  है,घर में छोरा ,गाँव   ढिंढोरा
इसीलिये ये आवश्यक है,आस पास भी देखें थोड़ा
आस लगा कर देख रहें है,मन में जिसके सपने प्यारे
बैठी हो वो ऋद्धि सिद्धि ,अगल बगल ही ,पास तुम्हारे
सीधे पड़े लगी है दुखने ,अब तो कमर ,नींद ना आती,
शायद पलट जाय किस्मत ही ,कुछ परिवर्तन,हम झटपट लें
                                             आओ थोड़ी सी करवट लें
सिमटे,सिकुड़ रहें क्यों लेटे ,थोड़ा हाथ पैर फैलाएं
मिल सकते है हमको कितने,मोती बिखरे दांयें बांयें
सीमित बंधे हुए बंधन में ,रहना  बाधक है प्रगति में
कुछ  करके दिखलाना हो तो,रखें हौसला अपने जी में
रहें न कूपमण्डूकों जैसे , बाहर निकले हम कुवें से ,
है विशाल संसार,निकल कर,इसकी भी तो ज़रा झलक लें
                                          आओ थोड़ी सी करवट लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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