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शनिवार, 15 सितंबर 2012

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया श्रृंगार अब.....


    आ प्रिये कि हो नयी 
         कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,
                आ प्रिये कि प्रेम का हो 
                        एक नया श्रृंगार अब.....

       तू रहे ना तू कि मैं ना 
               मैं रहूँ अब यूं अलग
                       हो विलय अब तन से तन का 
                               मन से मन का - प्राणों का,
                                     आ कि एक - एक स्वप्न मन का
                                             हो सभी साकार अब....

              अधर से अधरों का मिलना
                      साँसों से हो सांस का,
                             हो सभी दुखों का मिटना
                                    और सभी अवसाद का,
                                           आ करें हम ऊर्जा का
                                                  एक नया संचार अब.....

                       चल मिलें मिलकर छुएं
                               हम प्रेम का चरमोत्कर्ष,
                                      चल करें अनुभव सभी
                                                आनंद एवं सारे हर्ष,
                                                        आ चलें हम साथ मिलकर
                                                                 प्रेम के उस पार अब....

                                 ध्यान की ऐसी समाधि
                                        आ लगायें साथ मिल,
                                                 प्रेम की इस साधना से
                                                         ईश्वर भी जाए हिल,
                                                                आ करें ऐसा अलौकिक
                                                                         प्रेम का विस्तार अब....

                                                                         - VISHAAL CHARCHCHIT

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मनाने का भाव


हिंदी दिवस 
मनाने का भाव 
अपनी जड़ों को सीचने का भाव है . 
राष्ट्र भाव से जुड़ने का भाव है . 
भाव भाषा को अपनाने का भाव है . 

हिंदी दिवस 
एकता , अखंडता और समप्रभुता का भाव है . 
उदारता , विनम्रता और सहजता का भाव है . 
समर्पण,त्याग और विश्वास का भाव है . 
ज्ञान , प्रज्ञा और बोध का भाव है . 

हिंदी दिवस
अपनी समग्रता में 
खुसरो ,जायसी का खुमार है . 
तुलसी का लोकमंगल है 
सूर का वात्सल्य और मीरा का प्यार है . 

हिंदी दिवस 
कबीर का सन्देश है 
बिहारी का चमत्कार है 
घनानंद की पीर है 
पंत की प्रकृति सुषमा और महादेवी की आँखों का नीर है . 


हिंदी दिवस 
निराला की ओजस्विता 
जयशंकर की ऐतिहासिकता 
प्रेमचंद का यथार्थोन्मुख आदर्शवाद 
दिनकर की विरासत और धूमिल का दर्द है . 


हिंदी दिवस 
विमर्शों का क्रांति स्थल है 
वाद-विवाद और संवाद का अनुप्राण है 
यह परंपराओं की खोज है 
जड़ताओं से नहीं , जड़ों से जुड़ने का प्रश्न है . 

हिदी दिवस 
इस देश की उत्सव धर्मिता है 
संस्कारों की आकाश धर्मिता है 
अपनी संपूर्णता में, 
यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है .





रचनाकार-डॉ मनीष कुमार मिश्र
असोसिएट
भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र ,
राष्ट्रपति निवास, शिमला
manishmuntazir@gmail.com

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिंदी की पुकार ( कविता )

जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है


दर्द-ए-दिल समझ के कोई अनजान बैठा है ,
लूटने वाला यहाँ बनके महान बैठा है ,
लाश है कि हिलने का नाम नहीं ले रही ,
और जनाजों के इंतजार में शमशान बैठा है |

नाराज सा देखो ये सारा जहां बैठा है,
मिट्टी का माधो ले सबकी कमान बैठा है,
दिख रहा मुकद्दर बस खामोशियाओं भरा,
बादलों के इंतज़ार में आसमान बैठा है |

ज़मीरों का भी कोई खोला दुकान बैठा है,
इंसानों के कत्ले-आम को इंसान बैठा है,
चंद सिक्कों से तौले जा रहे हैं लोग अब,
सबको बनाने वाला खुद ऊपर हैरान बैठा है |

गमगीन-सा आज का हर नौजवान बैठा है,
छोड़ कर पंक्षी आज अपनी उड़ान बैठा है,
बड़ा ही रहस्यमय-सा है आज का मंजर,
उत्साह का सागर ही खुद परेशान बैठा है |

भक्त सत्य का आज खाली मकान बैठा है,
भ्रष्ट नाली का कीड़ा बना तुर्रम खान बैठा है,
जीवित लाशों केधर पे शहँशाह-सा बैठा,
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |
जमाना हर कदम पे लेने इम्तिहान बैठा है |

मुहावरों में माहिर-नेताजी की तक़रीर

 मुहावरों में माहिर-नेताजी की तक़रीर

 दोस्तों,जो भौंकते  है,वो नहीं है काटते,
                               हम है  वो जो भोंकते भी, और काटे  भी  बहुत
लोग कहते ,गरजते बादल बरसते है नहीं,
                                हम गरजते भी बहुत है,और बरसते  भी बहुत
तेल नौ मन हो न हो पर नचाते है राधिका,
                                कितना भी आँगन हो टेड़ा,हम नचाना जानते
सच है जब चलता है हाथी,तो है कुत्ते भौंकते,
                                हम वो हाथी,भौंकते  कुत्तों जो  चिंघाड़ते
राई का पर्वत बनाना,खेल बांयें हाथ का,
                                  ऊँट ये जीरा न खाता,नोट की ये बोरियां
चोर के घर मोर की बातें सुनी है आपने,
                                   चोर हम वो,मोर के घर जा कर करते चोरियां   
चोर की दाढ़ी में तिनका ,आयेगा कैसे नज़र,
                                   हम तो है वो चोर जो कि दाढ़ी रखते ही नहीं
गलत करके रख दिया है,हमने ये मुहावरा,
                                   नाग जो फुंकारते है ,वो कभी डसते  नहीं
  घुसे काजल कोठरी में,बिना कालिख लगाये,
                                कायले कि दलाली में हाथ ना काले किये
लूट का सब माल हमने ,पास अपने ना रखा ,
                                 सभी पैसे हमने स्विस के बेंक में भिजवा दिये
आधुनिक हैं,नहीं है,हम तो लकीरों के फ़कीर,
                                 इसलिए छोड़ी फकीरी,अमीरी से  हम जिये
आपने तो हमको दी थी,एक बस केवल लकीर,
                                  बहुत सारे जीरो हमने  उसके आगे भर दिये
 कम्पूटर लीजिये,लेपटोप,टी वी लीजिये,
                                  दो रुपय्ये किलो चांवल,फ्री बिजली लीजिये
आपसे बस ये हमारी,इतनी सी दरख्वास्त है,
                                 चाहे कुछ भी लीजिये पर  वोट हमको दीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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