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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


              आरक्षण की मार है , रही देश को मार ।
              इक जाति कभी दूसरी, मांगे ये अधिकार ।।
              मांगे ये अधिकार, नहीं इसका हल कोई ।
              करें हैं तोड़-फोड़ , व्यर्थ में ताकत खोई ।।
              कहे विर्क कविराय , नहीं दिखते शुभ लक्षण ।
              हो सुविधा की मांग , न मांगो तुम आरक्षण ।।

                                * * * * *

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क

       अफजल- कसाब से कई , ठूंसे हमने जेल ।
       फाँसी लटकाए नहीं , देश रहा है झेल ।।
       देश रहा है झेल , किया खर्च करोड़ों में ।
       पारा बनकर बैठ , ये गए हैं जोड़ों में ।।
       कहे विर्क कविराय , मिले ऐसा इनको फल ।
       फिर भारत की तरफ , न देखे कोई अफजल ।।

                         * * * * *

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कुंडलिया


 दफ्तर लगते दस बजे , औ ' आठ बजे स्कूल ।
 अजब नीति सरकार की , टेढ़े बहुत असूल  ।
 टेढ़े बहुत असूल , फ़िक्र ना मासूमों की 
 ए.सी. में बैठकर , बात हो कानूनों की ।
 न सुनें हैं फरियाद , न दर्द जानते अफ़सर
 जमीं के साथ विर्क , कब जुड़ेंगे ये दफ्तर ?
                  
                                         दिलबाग विर्क 

रविवार, 11 दिसंबर 2011

कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


  आशा से संसार है, रखना दिल में आस 
 मंजिल होगी पास में, करते रहो प्रयास ।
 करते रहो प्रयास , झोंक दो पूरी ताकत 
 जीवन होगा सफल, न टिक पाएगी आफत ।
 मत डालो हथियार, हराती हमें हताशा 
 कहत विर्क कविराय, अमृतधार है आशा ।

                         --------- साहित्य सुरभि

                                  * * * * *

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

गजल - दिलबाग विर्क




                        इस दिल ने नादानी में
                   आग लगा दी पानी में ।

                   वा'दे सारे खाक हुए
                   आया मोड़ कहानी में ।

                   तेरी याद चली आए
                   है ये दोष निशानी में ।

                   कब उल्फत को समझ सके
                   लोग फँसे नादानी में ।

                   या रब ऐसा क्यों होता 
                   दुख हर प्यार कहानी में ।

                   टूटा दिल, बहते आँसू
                   पाए विर्क जवानी में ।

                         * * * * *

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

अगज़ल ----- दिलबाग विर्क



     माना  कि  जुदाई  से  गए  थे  बिखर  से  हम 
     नामुमकिन तो था मगर, संभल गए फिर से हम. 
                           साहित्य सुरभि  


                         * * * * *

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

अगज़ल-दिलबाग विर्क


                      

प्यार-मोहब्बत के फरिश्तों का हमजुबां होना 
सब गुनाहों से बुरा है दिल में अरमां होना .


अहसास की आँखों से देखी हैं रुस्वाइयाँ 
महज़ इत्तफाक नहीं दिल का परेशां होना .

नजदीकियां भी बुरी होती हैं दूरियों की तरह 
जरूरी है कुछ फासिलों का दरम्यां होना .


गर गरूर है उन्हें महलों का तो रहने दो 
मेरे लिए काफी है सिर पे आसमां होना .


न जाने क्यों खुदा होना चाहते हैं लोग
काफी होता है एक इंसां का इंसां होना .


जीना मकसद है जिंदगी का 'विर्क' जीता रह 
क्यों चाहता है अपने कदमों के निशां होना .

                      * * * * *

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