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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

इजहारे इश्क-बुढ़ापे में

इजहारे इश्क-बुढ़ापे में

दिल के कागज़ पर लिखा है,नाम केवल आपका

ध्यान मन में लगा रहता है हरेक पल  आपका
क्या गजब का हुस्न है और क्या  अदाएं आपकी,
घूमता आँखों में रहता, चेहरा चंचल    आपका
हम को दीवाना दिया है कर तुम्हारी चाह ने ,
सोने के साँचें से आया , ये बदन ढल आपका
बन संवर के ,निकलती  हो ,जब  ठुमकती चाल से,
दिल करे दीदार करता रहूँ दिन भर   आपका
श्वेत  केशों पर न जाओ,उम्र में  क्या रखा,
प्यार देखो,दिल जवां है,और पागल  आपका
बात सुन वो हँसे,बोले आप है सठिया गये,
जंच रहा है ,नहीं हमको ,ये प्रपोजल  आपका
फिर भी ये तारीफ़ सुन कर,हमको है अच्छा लगा,
तहे दिल से शुक्रिया है,डियर 'अंकल'  आपका
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 12 सितंबर 2012

परेशानी की वजह

        परेशानी की वजह

तुम परेशां,हम परेशां,हर कोई है परेशां,

                         परेशानी किस वजह है,कभी सोचा आपने
बात है ऐसी कोई जो खटकती मन में सदा,
                         याद करिये किया था क्या कोई लोचा आपने
बहुत सी चिंतायें जो रहती लगी घुन की तरह,
                          गलतियां तो खुद करी,औरों को कोसा  आपने
या की फिर बढ़ने को आगे,जिंदगी की दौड़ में,
                           क्या कभी तोडा था ,कोई  का भरोसा आपने
 हमने उनसे पूछा ये,तो उनने हम से ये कहा,
                           जो भी ,जैसा चल रहा है,चलने दो,खामखाँ,
परेशानी की वजह को ढूँढने की फ़िक्र में,
                           एक परेशानी बढ़ा कर, करें खुद को  परेशां

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चीपट-घिसे हुए साबुन की

चीपट-घिसे हुए साबुन की

घिसे हुए साबुन की चीपट,

न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


एक काम कर दूँ

सोचता हूँ मैं एक काम कर दूँ,

ये रूत ये हवा तेरे नाम कर दूँ,

हाजिर कर दूँ चाँद-तारों के तेरे कदमों में,

जुगनुओं को भी तेरा कद्रदान कर दूँ |

लाखों फूलों से तेरा हर राह भर दूँ,
ले बहारों का शमा तेरे बांह भर दूँ,
ख़ुशबुओं को समेट कर उड़ेल दूँ तुझमे,
सौंदर्य से हर रिश्ता तेरा निर्वाह कर दूँ |

जो न हुआ कभी भी वो आज कर दूँ,
तेरे लिए इस जग को भी नाराज कर दूँ,
जमाने भर की मुस्कान बांध दूँ तेरे आँचल में,
तेरे लिए नए संसार का आगाज़ कर दूँ |

ख्वाबों की दुनिया में तेरा द्वार कर दूँ,
खुशियाँ तेरी अब एक से हज़ार कर दूँ,
एक काम कर दूँ, जहां रोशन कर दूँ,
इज़हार-ए-चाह आज सरे बाज़ार कर दूँ |

मंगलवार, 11 सितंबर 2012

ये पर्वत हैं

               ये पर्वत हैं

इन्हें न समझो तुम चट्टानें, इन्हें न समझो ये पत्थर है

ये सुन्दर है,ये  मनहर है ,झरझर झरते ये निर्झर  है
धरती माँ के स्तन मंडल,ये तो बरसाते अमृत है
                                        ये पर्वत है
हरे भरे हैं,मौन खड़े है,विपुल सम्पदा के स्वामी  है
तने हुए सर ऊंचा करके,निज गौरव के अभिमानी है
कहीं बर्फ से आच्छादित है,कहीं बरसती निर्मल धारा
कहीं अरण्य,कहीं भेषज है,सुन्दर हरित रूप है प्यारा
इनकी कोख भरी रत्नों से,कहीं स्वर्ण है,कहीं रजत है
                                       ये पर्वत  है
हिम किरीट से चमक रहे है,रजत शिखर  आलोकित सुन्दर
सूरज की किरणे भी सबसे,पहले इन्हें चूमती  आकर
कहीं देवियों के मंदिर है,कहीं वास करते  है शंकर
ये उद्गम गंगा यमुना के,इनमे ही है मानसरोवर
ये सीमाओं के प्रहरी है,अटल,अजय है,दुर्गम पथ है
                                      ये पर्वत है
मानव देव और दानव भी,काम सभी के आते है ये
अमृत मंथन को मेरु से,मथनी भी बन जाते है ये
नींव बने प्रगति ,विकास की,इनकी चट्टानों के पत्थर
किन्तु धधकता है  लावा भी,ज्वालामुखी ,सीने के अन्दर
मानव ने कर दिया खोखला,बहुत दुखी है आहत है
                                     ये पर्वत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


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