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रविवार, 5 अगस्त 2012

बिन दोस्ती


क्या होता शमा ये क्या बताऊँ यारों,
भगवान न होते और ये बंदगी न होती;
दोस्तों के बिना शायद कुछ भी न होता,
ये सांसें भी न होती, ये जिंदगी न होती |

खुशियाँ न होती और मुस्कान भी न होते,
जिस्म तो होता पर उसमे जान भी  न होती;
रहता अधूरा शायद हर जश्न-ए-जिंदगी,
दोस्तों के बना अपनी शान भी न होती |

नर्क सा होता उस स्वर्ग का भी मंजर,
महफिल भी शायद वीरान सी ही होती;
दोस्ती है मिश्रण हर रिश्ते का "दीप",
जिंदगी बिन तरकश के बाण सी ही होती |

(सभी मित्रों को समर्पित यह रचना)

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कुछ पंक्तियाँ


ज़िन्दगी में सभी की , अफ़साने बहुत हैं
सुनाने को अब भी तराने बहुत हैं
किसी के पास सर छुपाने को छत भी नहीं 
तो किसी के पास आशियाँ बनाने को ठिकाने बहुत हैं |




अनु डालाकोटी पपनै

बुधवार, 18 जुलाई 2012

एक कदम पीछे हटा कर देखिये

एक कदम पीछे हटा कर देखिये

एक कदम पीछे हटा कर देखिये,

              मुश्किलें सब खुद ब खुद हट जायेगी
अहम् अपना छोड़ पीछे जो हटे,
              आने  वाली बलायें टल जायेगी
सामने वाला तो ये समझेगा तुम,
              उसके  डर  के मारे पीछे   हट गये
उसको खुश होने दो तुम भी खुश रहो,
             दूर तुमसे हो कई   संकट  गये
अगर तुमको पलट कर के वार भी,
              करना है तो पीछे हट  करना भला
जितनी ज्यादा पीछे खींचती प्रतंच्या,
              तीर उतनी ही गति से है चला
आप पीछे हट रहे यह देख कर,
               सामने वाला भी होता बेखबर
वक़्त ये ही सही होता,शत्रु पर,
               वार चीते सा करो तुम झपट कर
और यूं भी पीछे हटने से तुम्हे,
               सेकड़ों ही फायदे  मिल जायेंगे
नज़र  जो भी आ रहा ,पीछे हटो,
               बहुत सारे नज़ारे  दिख जायेंगे
बहुत विस्तृत नजरिया हो जाएगा,
                संकुचित जो सोच है,बदलाएगी
एक कदम पीछे हटा कर देखिये,
           मुश्किलें सब खुद ब खुद  हट जायेगी

   मदन मोहन बहेती'घोटू'
  

दुनिया की रंगत देख ली

i       दुनिया की रंगत देख ली

क्या बतायें,क्या क्या देखा,जिंदगी के सफ़र में,

        बहुत कुछ अच्छा भी देखा,बुरी भी गत   देख ली
भले अच्छे,झूठें सच्चे,लोगो से मिलना हुआ,
         धोखा खाया किसी से, कोई की उल्फत देख ली
स्वर्ग क्या है,नरक क्या है,सब इसी धरती पे है,
         देखा दोजख भी यहाँ पर,यहीं जन्नत देख ली
उनसे जब नज़रें मिली तो दिल में था कुछ कुछ हुआ,
         और जब दिल मिल गए,सच्ची मोहब्बत देख ली
कमाने की धुन में में थे हम रात दिन एसा लगे,
          चैन अपने दिल का खोकर,ढेरों दौलत   देख  ली
परायों का प्यार पाया,अपनों ने धोखा दिया,
           इस सफ़र में गिरे ,संभले,हर मुसीबत  देख ली
हँसते रोते यूं ही हमने काट दी सारी उमर,
          अच्छे दिन भी देखे और पतली भी हालत देख ली
गले मिलनेवाले कैसे पीठ में घोंपे छुरा,
           कर के अच्छे बुरे सब लोगों की संगत    देख ली
इतनी अच्छी दुनिया की रचना करी भगवान ने,
          घूम फिर कर हमने इस दुनिया  की रंगत  देख ली
जब भी आये हम पे सुख दुःख,परेशानी,मुश्किलें,
             हमने उसकी इबाबत की,और इनायत   देख ली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

कार चाहिये

        कार चाहिये

आदमी में होना अच्छे संस्कार चाहिये

प्रेमभाव मन में हो,नहीं विकार  चाहिये
बुजुर्गों की करना सेवा ,सत्कार  चाहिये
नहीं करना किसी का भी तिरस्कार  चाहिये
करना अपने सारे सपने ,जो साकार चाहिये
ईश का वंदन करो यदि चमत्कार  चाहिये
मैंने ये सब बातें शिक्षा की जो बेटे से कही,
बेटा बोला ठीक है पर  पहले कार चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


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