क्या होता शमा ये क्या बताऊँ यारों,
भगवान न होते और ये बंदगी न होती;
दोस्तों के बिना शायद कुछ भी न होता,
ये सांसें भी न होती, ये जिंदगी न होती |
खुशियाँ न होती और मुस्कान भी न होते,
जिस्म तो होता पर उसमे जान भी न होती;
रहता अधूरा शायद हर जश्न-ए-जिंदगी,
दोस्तों के बना अपनी शान भी न होती |
नर्क सा होता उस स्वर्ग का भी मंजर,
महफिल भी शायद वीरान सी ही होती;
दोस्ती है मिश्रण हर रिश्ते का "दीप",
जिंदगी बिन तरकश के बाण सी ही होती |
(सभी मित्रों को समर्पित यह रचना)