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बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

१०० वीं प्रस्तुति

शुभकामनाएं--

File:Onam pookalam.jpg
रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले  दिवाली  दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||

Deepavali To Complete With Gambling













घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
Diwali Cracker Hamper
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली  ||

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं,

रविकर की पहली रचना ; अक्तूबर1978

 http://www.shunya.net/Pictures/South%20India/Ajanta/AjantaCaves38.jpg

विश्वास है बिलकुल नहीं कि भूल मैं तुझको सकूँगा -
जब रुपहली मोतियाँ खिलखिलायेंगी कभी -
घिर घटाएं माह पावस में सुनाएँ गरजने-
जब कभी व्याकुल नजर जा टिके उत्तुंग शिख पर -
ऋतुराज आकर या सुनाये जब प्रिये रव कोकिला-
याद कैसे छोड़ दूंगा तब भला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||

India Ajanta Cave Painting: Ajanta Caves Photos, Ajanta Caves Wallpapers, Ajanta Caves Galleries ...
सत्य है अब भी यही कि रूप पर आसक्त हूँ मैं -
पर तिमिर एकांत में, आवेश में उन्माद में भी -
कह नहीं सकती कि चाहा रूप पर अधिकार तेरे |
पर मधुप क्या दूर रह पाया मधुरता से कभी -
बन पतिंगा रूप पर तेरे जला  मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
http://www.shunya.net/Pictures/South%20India/Ajanta/Ajanta08.jpg
पर समझ पाया नहीं मैं आप का यह खेल अब भी -
भूल करके इस भले को घर बनाओगी धरा पर -
खूबसूरत गुम्बदों को शीश पर ढोती रही तुम-
अंगूरी लताएँ खूबसूरत साथ में सजती रही जो -
चैन कैसे पा सकूँ उनको भुला मैं |
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल

 

तू ही लक्ष्मी शारदा, माँ दुर्गा का रूप |
जीव-मातृका मातु तू, प्यारा रूप अनूप ||
जीव-मातृका=माता के सामान समस्त जीवों का
पालन करने वाली सात-माताएं-
धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
शत्रु-सदा सहमे रहे, सुनकर सिंह दहाड़ |
काले-दिल हैवान की, उदर देत था फाड़ ||

देश द्रोहियों ने रचा, षड्यंत्रों का जाल |
 सोने की चिड़िया उड़ी, गली विदेशी दाल ||

टुकड़े-टुकड़े था  हुआ,  सारा   बड़ा   कुटुम्ब, 
पाक-बांगला-ब्रह्म  बन, लंका  से  जल-खुम्ब ||
BharatMata.jpg

महा-कुकर्मी पुत्र-गण, बैठ उजाड़े गोद |
माता के धिक्कार को,  माने महा-विनोद ||

कमल पैर से नोचकर,  कमली रहे सजाय |
कमला बसी विदेश तट,  ढपली रहे बजाय || 
तट = Bank


INC-flag.svg 

हाथ गरीबों पर उठा,  मिटी गरीबी रेख |
पंजे ने पंजर किया,  ठोकी दो-दो मेख | 
मेख = लकड़ी का पच्चर / खूंटा 

File:Bahujan Samaj Party.PNG http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f2/ECI-arrow.png

सिंह खिलौना फिर बना, खेले हाथी खेल |
करे महावत मस्तियाँ,  मारे तान गुलेल ||

कुण्डली 
CPI-banner.svg
File:ECI-bow-arrow.png
हँसुआ-बाली काटके,  नटई नक्सल काट |
गैंता-फरुहा खोदता,  माइंस रखता पाट | 
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/45/ECI-corn-sickle.png File:ECI-two-leaves.png
माइंस रखता पाट, डाल  देता दो पत्ती|
खड़ी पुलिस की खाट, बुझा दे जीवन-बत्ती |
File:ECI-hurricane-lamp.pngFile:ECI-bicycle.png
लालटेन को  ढूँढ़, साइकिल लेकर बबुआ | 
मुर्गे जैसा काट,  ख़ुशी से झूमें हँसुआ ||
File:ECI-cock.png
 बिद्या गई विदेश को, लक्ष्मी गहे दलाल |
माँ दुर्गा तिरशूल बिन, यही देश का हाल ||

जगह जगह विस्फोट-बम, महँगाई की मार |
कानों में ठूँसे रुई, बैठी है सरकार ||

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल ||

रविकर की प्रस्तुति

 (शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा,  कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे,  सदा बढ़े शुभ प्यार ||
   करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की,  महिमा  अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ,  लागूँ  राज- कुमार ||
Karwa Chauth
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
  सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली  चाल ||
  करवाल=तलवार  
करवा संग करवालिका,  बनी बालिका वीर |
शक्ति  पा  दुर्गा   बनी,  मनुवा  होय  अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?

 शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें,  बेगम सदा सशंक ||

  लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश  |
चौथी से ही चल रहा,  अब क्या लेना चांस ??


(महिमा )  
नारीवादी  हस्तियाँ,  होती  क्यूँ  नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके पुन: समाज ||

 मर्द कमाए लाख पण,  करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी  बिना,  डूबा  हुआ  जहाज  ||

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को-

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को माँगें ||



टांगें  टूटी  गधे  की ,  धोबी   देता   छोड़ |
बच्चे   पत्थर  मारके,   देते  माथा  फोड़ |


 


 देते माथा  फोड़,   रेंकता  खा  के  चाटा |
 मांगे जनमत आज, गधों हित धोबी-घाटा |


घाट-घाट पर घूम,  मुआँ  घाटी को माँगें |
चले चाल अब टेढ़ ,  तोड़  दे  चारों  टांगें ||

ड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वाणी पुन्नू  की  प्रबल,  अन्नू  का  उपवास | 
चित्तू  का  डंडा  सबल,  दिग्गू  का  उपहास |

लोकपाल  मुद्दा  बड़ा,  जनता  तेरे  साथ |
काश्मीर का मामला, जला रहा क्यूँ  हाथ ?

कालेधन  से  है  बड़ा, माता  का  सम्मान |
वैसी भाषा  बोल मत,  जैसी  पाकिस्तान ||

झन्नाया था गाल  जब,  तू   तेरा  स्टाफ |
उस बन्दे को कूटते,  हमें  दिखे  थे साफ़ ||

सड़को पर जब आ गया, सेना का सैलाब |
तेरे  बन्दे  पिट गए,  कल  से  थे  बेताब  |

करना यह दावा नहीं,  हो  गांधी  के भक्त |
बड़ी दलीलें  तुम रखो,  उधर है  डंडा  फ़क्त ||

वैसे  दूजे  पक्ष  को,  मत  कर  नजरन्दाज |
त्रस्त बड़ी सरकार थी,  मस्त  हो रही आज ||

पहले  पीटा  फिर  पिटा,  चले   कैमरे  ठीक  |
होती  शूटिंग सड़क  पे, नियत लगे  ना  नीक ||

घूँस - युद्ध  की  नायकी,  घाटी  में  यूँ  डूब |
घूँसा जबड़े  पर  पड़ा,   देत   दलीलें   खूब ||

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |

लगा रेकने जब कभी, गधा बेसुरा राग |
बहुतों ने बम-बम करी, बैसाखी में फाग |

बैसाखी में फाग, घास समझा सब खाया |
गलत सोच से खूब, सकल परिवार मुटाया |

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |
ढेंचू - ढेंचू  रोज, लगा  बे-वक्त  रेंकने ||

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

दीपक बाबा की प्रेरणा से -- बक बक

निर्बुद्धि की जिन्दगी, सुख-दुःख से अन्जान |
निर्बाधित जीवन जिए,  डाले  न व्यवधान  ||

बुद्धिमान करता रहे , खाकर-पीकर मौज |
एकाकी जीवन जिए, नहीं  बढ़ाये  फौज ||
http://4.bp.blogspot.com/_dhoMIsj0SUU/TVIuCd3zIdI/AAAAAAAAHLY/EDNVDat6MJA/s1600/a_mayawati_0414.jpg
बुद्धिवादी परिश्रमी,  पाले  घर  परिवार |
मूंछे  ऐठें  रुवाब से,  बैठे  पैर  पसार  ||
बुद्धिजीवी  का  बड़ा, रोचक  है  अन्दाज |
जिभ्या ही करती रहे, राज काज आवाज ||
Former Chief Minister of Madhya Pradesh and Congress leader Digvijay Singh gestures during an interview, in New Delhi on March 26, 2009.
बुद्धियोगी  हृदय  से,  लेकर  चले समाज |
करे भलाई जगत का, दुर्लभ हैं पर आज ||
Anna Hazare and Mahatma Gandhi

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

 लंका-नगरी बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ  भी  ना  कर पाया था |
 असंतुष्ट  हो  वचन  सहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
[2.jpg]
दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब  अकुलाया था |
पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
बाएं से चौथे सिर ने नम-आँखों, दर्द  छुपाया था-
भाई   ने   तो   पैर   गहे   थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
दूजे  ने  रौशनी  गंवाई  एक आँख  बाली  से घिर |
तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
मन्दोदरी से चौथा चाहे  बातचीत हरदम आखिर |
पर  सबके  अरमान  दहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
File:Sita Mughal ca1600.jpg[bhrun-hatya_417408824.jpg]
शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
दो पैरों  के, बीस  हाथ  के,  कर्म - कुकर्म  सदा भाये |
मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
नया  दशानन  पैरों  की  दस  जोड़ी  पर सरपट धाये |
दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
सब सिर के अरमान लहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/c/ce/Mohammed_Ajmal_Kasab.jpg Train inferno: Burning oil tankers after a tanker train caught fire following derailment near Chanmana village between
Aluabari and Mangurjaan railway stations in Kishanganj district of Bihar on Wednesday.

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार

पति  की  अनुनय  को  धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी - बोल  कटार - गम,  सहे  चोट  मन - ढाल ||

पत्नी  पग-पग  पर  परे, पल-पल  पति  पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||


हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर  से  तेज  है,  हार   हूर  अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लाले

 चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
 तेज तड़ित तन तोड़ती,  तददिन तमक तड़ाक |

मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||

 मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव 

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

गरीब घटाते हैं--

बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के

आयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |

दवा दारु नेचर से, कपडे  फटीचर  से

मुफ्तखोर टीचर से,  बच्चा पढवाते  हैं |

सेहत शिक्षा मिलगै , कपडा लत्ता सिलगै

तनिक छत हिलगै,  काहे घबराते हैं ?

गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,

सरकारी झाल-झोल, गरीब  घटाते हैं ||

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

घंटा बढ़ते और समर्थक---

 





मोदी  टोपी  पहनते, क्या खो  जाता तोर ??
सेक्युलर का काला हृदय, खिट-पिट करता और |

खिट-पिट करता और, उतरती  उनकी टोपी |
वोट  बैंक  की  नीत,   बघेला   बेहद   कोपी |

कटते हिन्दू वोट, देख कर हरकत भोंदी |
घंटा  बढ़ते  और, समर्थक  मुस्लिम  मोदी ||

कट्टर हिन्दू-मुसल्मा, हैं औरन से नीक |
इंसानियत उसूल है, नहीं छोड़ते लीक |
             नहीं छोड़ते लीक, नहीं थाली के बैगन |
लुढ़क गए उस ओर, जिधर जो जमते जन-गन |
मोदी तुझे सलाम, कहीं न तेरा टक्कर |
            मूरत अस्वीकार, करे मुस्लिम भी कट्टर ||


पहन मुक़द्दस टोपियाँ, बड़ी-बड़ी सरकार |
लालू शरद मुलायमी, काँग्रेस - आधार |

काँग्रेस - आधार , पहन कर टोपी सुन्दर |
बेडा अपना पार, करें ये मस्त कलन्दर |

पर मौलाना सोच, बड़े ये भारी सरकस |
कितना की उपकार, टोपियाँ पहन मुक़द्दस ||

सोमवार, 19 सितंबर 2011

भ्रूण में मरती हुई

 

बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती  रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी  हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
photo of a sugar ant (pharaoh ant) sitting on a sugar crystal
देख -गन्ने सी  सड़ी,  पेरी  गयी  इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो  रही हैं  चीटियाँ ||


हो  रही  बंजर  धरा, गौवंश  का  अवसान  है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


भ्रूण  में  मरती  हुई  वो  मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का  मरोड़े  कांच की नव चूड़ियाँ |


हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां  दर  पीढियां, बढती  रहीं  दुश्वारियां  ||

बुधवार, 14 सितंबर 2011

बताओ तो जाने : ब्लॉग का नाम

 रविकर की टिप्पणियां-इस सप्ताह

 (१)
घनाक्षरी --
खनन उपक्रम का, बेबस राजधर्म का
लूट-तंत्र बेशर्म का, सुवाद अंगूरी है |
राजपाट पाय-जात, धरती का खोद-खाद
लूट-लूट खूब खात, यही तो जरुरी है |
कहीं कांगरेस राज, भाजप का वही काज
छोट न आवत  बाज, भेड़-चाल पूरी है |
चट्टे-बट्टे थैली केर, सारे साले एक मेर,


 है देर न अंधेर है,  आम मजबूरी है || 
  
(२)


देख सकने की,
जरा बकने की,
हंसीं सपने की,
तन्हा तपने की,
आदत है |
बुरी लत है ||

(३)


कुण्डली-
जब तक दुनिया है सखे, तब तक पत्थर राज |
पत्थर  से  टकराय  के,  लौटे   हर  आवाज  ||
लौटे   हर  आवाज,  लिखाये  किस्मत  लोढ़े,
कर्मों पर विश्वास, करे  क्या  किन्तु  निगोड़े ?
कोई  नहीं  हबीब,  मिला जो उसको अबतक,
जिए  पत्थरों  बीच, रहेगा जीवन जब तक ||
(४)
कुण्डली-
बड़ा प्रफुल्लित हो रहा, मिला शरद सा बाप |
मौज  करे  वो  ठाठ  से,  न  कोई  संताप ||
न   कोई    संताप ,  उडाये   आसमान  में,
मन  के  घोड़े  ख़ास, रहता  ख़ूब  गुमान  में ||
अब क्रिकेट का राज,  जभी रैना को पकड़ा,
सौंपेगा  साम्राज्य,  जोड़-जोड़  करता बड़ा ||
(५)

हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||

विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |

सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |

जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |

उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||

हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल |
(६)

सच्चाई की बात अजीब,
धूप - चांदनी पर खीज  |
तक़दीर फांके धूल-
उनको फूल सी चीज ||


भ्रूण में मारी हीर
है बड़ा बदतमीज |
खुशियाँ दी बेच
आँखे रही भीज ||


समझ की लाली
जिलाए रक्तबीज |
सहकर जुल्म हुआ
मुजरिम नाचीज || 

रविवार, 11 सितंबर 2011

लेता देता हुआ तिहाड़ी, पर सरकार बचा ले कोई ||


माननीय प्रतुल वशिष्ठ जी
की महती कृपा !!
उनका विश्लेषण भी पढ़ें |

आलू   यहाँ   उबाले   कोई  |
बना  पराठा  खा  ले  कोई ||
आलू उबाला तो जनता ने था... लेकिन पराठा नेताजी खा रहे हैं.


तोला-तोला ताक तोलते,
सोणी  देख  भगा  ले कोई |
मौके की तलाश में रहते हैं कुछ लोग ...
जिस 'सुकन्या' ने विश्वास किया ..
उस विश्वास के साथ 'राउल' ने घात किया.


 
जला दूध का छाछ फूंकता
छाछे जीभ जला ले कोई |
हमने कांग्रेस को फिर-फिर मौक़ा देकर अपने पाँव कुल्हाड़ी दे मारी...
हे महाकवि कालिदास हमने आपसे कुछ न सीखा!


जमा शौक से  करे खजाना 
आकर  उसे  चुरा ले कोई ||
काला धन जमा करने वाले इस बात को समझ नहीं रहे कि
विदेशी चोरों को जरूरत नहीं रही चुराने की... अब वे घर के मुखियाओं को मूर्ख बनाना जान गये हैं... धन की बढ़ती और सुरक्षा की भरपूर गारंटी देकर वे उस घन का प्रयोग करते हैं... शास्त्र कहता है 'धन का उपयोग उसके प्रयोग होने में है न कि जमा होने में.'


लेता  देता  हुआ  तिहाड़ी
पर सरकार बचा ले कोई ||
लेने वाले और देने वाले दोनों तिहाड़ में पहुँचे ...
लेकिन उनके प्रायोजकों पर फिलहाल कोई असर नहीं... यदि कुछ शरम बची होगी तो शर्मिंदगी जरूर होती होगी... जो कर्म दोषी करार हुआ उसका फ़ल (सरकार का बचना) कैसे दोषमुक्त माना जाये?
... वर्तमान सरकार पर जबरदस्त जुर्माना होना चाहिए और इन सभी मंत्रीवेश में छिपे गद्दारों को कसाब के साथ काल कोठारी बंद करना चाहिए... ये सब के सब उसी पंगत में खड़े किये जाने योग्य हैं.

"रविकर" कलम घसीटे नियमित
आजा  प्यारे  गा  ले  कोई ||
रविकर जी, आपको लगता होगा कि आप कलम यूँ ही घसीट रहे हैं...
हम जानते हैं कि ये जाया नहीं जायेगा.... आपका श्रम आपकी साधना फलदायी अवश्य होगी.
दिनकर जी पंक्तियों में कहता हूँ :
कुछ पता नहीं, हम कौन बीज बोते हैं.
है कौन स्वप्न, हम जिसे यहाँ ढोते हैं.
पर, हाँ वसुधा दानी है, नहीं कृपण है.
देता मनुष्य जब भी उसको जल-कण है.
यह दान वृथा वह कभी नहीं लेती है.
बदले में कोई डूब हमें देती है.
पर, हमने तो सींचा है उसे लहू से,
चढ़ती उमंग को कलियों की खुशबू से.
क्या यह अपूर्व बलिदान पचा वह लेगी?
उद्दाम राष्ट्र क्या हमें नहीं वह देगी?

ना यह अकाण्ड दुष्कांड नहीं होने का
यह जगा देश अब और नहीं सोने का
जब तक भीतर की गाँस नहीं कढ़ती है
श्री नहीं पुनः भारत-मुख पर चढती है
कैसे स्वदेश की रूह चैन पायेगी?
किस नर-नारी को भला नींद आयेगी?...

 क्लिक --अमर दोहे

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