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शनिवार, 3 मार्च 2012

सर्दी से अब तलक, गया जो नहीं नहाने

तीन समाचार

पटना से सुशील मोदी
प्रसव करे पीड़ा सहे, रक्त दूध से पाल ।
नसबंदी की बात पर, होती रही हलाल ।
होती रही हलाल, पुरुष पौरुष दिखलाओ  ।
पांच मिनट का काल, चलो अब आगे आओ ।
मोदी की यह बात, करे खारिज नर-कीड़ा ।
मौज करे दिन रात,  सहे बस नारी पीड़ा ।।

जहानाबाद से दबंग -
काटे हाथ दबंग ने, पी एम सी एच नेक ।
पड़ा फर्श पर तड़पता, गए गाँव में फेंक ।
गए गाँव में फेंक, होय आशंका  भारी ।
नक्सल बने अनेक, किया लेकिन हुशियारी ।
उठे नहीं गन बम्ब, पोस्टर कैसे साटे ।
सके न नक्सल बन , हाथ दोनों जो काटे ।।  

धनबाद से अघोरी
पानी की किल्लत बढे, फिर दादा इस साल ।
होली में डी सी कहे, खेलो शुष्क गुलाल ।
खेलो शुष्क गुलाल, तिलक माथे पर लागे ।
बदलो अपनी चाल, कठिन दिन आये आगे ।
किन्तु अघोरी-छाप, बात उनकी ना माने ।
 सर्दी से अब तलक, गया जो नहीं नहाने ।।
 

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक -

किस्मत  में  पत्थर  पड़े,  माथे  धड़  दीवाल |
भंग  घोटते  कामजित,  घोटे  मदन  कमाल |
Deepavali To Complete With Gambling













घोटे  मदन  कमाल, दिवाली जित-जित आवै |
पा   जावे   पच्चास,  दाँव   पर   एक  लगावे |

रविकर  होय  निराश,  लगा  के  पूरे  सत्तर |
हार जाए सब दाँव, पड़े किस्मत में पत्थर ||
File:Bicycle-playing-cards.jpg
चौपड़ पर बेगम सजे, राजा बैठ अनेक |
टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक |

Custom Imprinted Playing Cards

वापस मिली न एक, दाँव रथ-हाथी-घोड़े |
 थोड़े चतुर सयान, टिपारा बैठे मोड़े |
File:Jack playing cards.jpg
कह रविकर कविराय, गया राजा का रोकड़ |
जीते सभी गुलाम,  हारते रानी-चौपड़ ||
टिपारा=मुकुट के आकार की कलँगीदार  टोपी

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

यहाँ करे यस मैम वहाँ क्यूँ बोला मोहन ?



मोहन करता  दंडवत, सम्मुख  पिद्दी  देश,

देकर एकड़  चार  सौलौटा  आज  स्वदेश |

लौटा आज स्वदेश
, पाक को कितना हिस्सा, 

काश्मीर   का   देत,  बता  दे  पूरा  किस्सा | 

   रही  सोनिया  डांट,  करे  न  मेरा  *जोहन,    
      *(इन्तजार)
यहाँ करे यस-मैम, वहाँ  क्यूँ  बोला मोहन ??
(२) 

 बड़ी अदालत  था  गया, खुदा का बंदा एक,  
 कातिल को फांसी मिले,  मारा   बेटा  नेक |  

मारा  बेटा  नेक, हुआ  आतंकी  हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |

जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु  संभालत,
     मानो  करते  माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |               
                                        
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
 -सुबोधकांत सहाय
(३)

संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों, 
 जनता  की  अवमानना, करते  रहते  क्यों ?

करते  रहते  क्यो, हमेशा  मंत्रि-कबीना |
 जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?

सत्ता-मद  में  चूर,  बढ़ी  बेशरमी  बेहद,
आतंकी फिर कहीं,  उड़ा  न  जाएँ  संसद |

(४)

कायर  की  चेतावनी, बढ़िया  मिली  मिसाल,
कड़ी  सजा  दूंगा  उन्हें, करे  जमीं जो लाल |

करे  जमीं  जो लाल,  मिटायेंगे  हम  जड़ से,
संघी  पर  फिर  दोष,  लगा  देते हैं  तड़  से | 

रटे - रटाये  शेर,  रखो  इक काबिल-शायर,
कम से कम हर बार, नयापन होगा कायर || 

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