मैं बिकाऊ हूं
जो भी लगाता ऊंची बोली
बनता में उसका हमजोली
समय संग ,रुख बदला करता
यह न समझना में टिकाऊ हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
मेरी निष्ठा उसके प्रति है ,
जो है ऊंचे भाव लगाता
जिसकी गुड्डी ऊंची उड़ती
मैं उस पर ही दांव लगाता
सोच समझ मौका पाते ही,
मैं बदला करता हूं पाली
तारीफ़ जिसकी आज कर रहा
कल उसको दे सकता गाली
अंदर से मेरा मन काला,
बाहर से उजला दिखाऊं हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
सही चुका दो मेरी कीमत ,
दूंगा तुमको चढ़ा अर्श पर
थोड़ी सी भी मक्कारी की
तुमको दूंगा पटक फर्श पर
कहने को सिपाही कलम का,
पर मैं हूं सत्ता का दल्ला
अच्छे अच्छों को उखाड़ मैं
सकता हूं ,कर कर के हल्ला
और कभी नारद बनकर के ,
आपस में सब को लड़ाऊं हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
जो दिखता है वह बिकता है,
दांत मेरे हाथी से सुंदर
खाने वाले दांत मेरे पर,
छुपे हुऐ है मुंह के अंदर
न तो पराये, ना अपनो का,
हुआ नहीं में कभी किसी का
स्वार्थ सिद्धि करना पहले है,
वफा निभाना मैं ना सीखा
मंदिर में पूजा मजार पर,
मखमल की चादर चढ़ाऊं हूं
मैं बिकाऊ हूं ,मैं बिकाऊ हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 02 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं