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मंगलवार, 1 जून 2021

 भैया हम जो भी जैसे हैं, वही रहेंगे ना बदलेंगे 
 तुम हमको चाहो ना चाहो लेकिन प्यार तुम्हें हम देंगे
 
 देख हमारे रूप रंग को, तुम भ्रम में पड़ जाते भारी
 हम कौवा हैं या कोकिल हैं काम न करती अक्ल तुम्हारी
जरा हमारे बोल सुनो तुम, कूहू कूहू या कांव कांव है
 ठौर हमारा नीम डाल है या अंबुवा की घनी छांव है
 तुम झटसे पहचान जाओगे,जब कोकिल से हम कूकेंगे
   भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे ना बदलेंगे 
   
चिंताओं के फंसे जाल में ,नींद नहीं आती डनलप पर
मेरी मानो कभी खरहरी, खटिया पर भी देखो सोकर 
ऊपर हवा, हवा नीचे भी, गहरी नींद करेगी पुलकित सुबह उठोगे, भरे ताजगी , अंगअंग होगा आनंदित
झोंके पीपल नीम हवा के ,नवजीवन तुममें भर देंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं, वहीं रहेंगे ना बदलेंगे

कच्ची केरी हमें समझ कर ,काट नहीं यूं अचार बनाओ 
करो प्रतीक्षा और पकने दो, मीठा स्वाद आम का पाओ
 जल्दबाजियों में अक्सर ही ,पड़ता है नुकसान उठाना 
अपनी खुद की करनी का ही, पड़ता है भरना जुर्माना 
नहीं सामने कुछ बोलेंगे ,पीठ के पीछे लोग हसेंगे 
भैया हम जो हैं जैसे भी वही रहेंगे, ना बदलेंगे 

ना तो पोत सफेदी तन पर, कोशिश करी हंस बन जाए 
 नौ सौ चूहे मार नहीं हम ,बिल्ली जैसे हज को जाएं 
 ना बगुले सी हममें भगती है और ना हम रंगे सियार हैं 
जो बाहर,वो ही हैं अंदर, हम मतलब के नहीं यार है लोगों का तो काम है कहना ,कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगे 
भैया हम जो भी जैसे हैं ,वही रहेंगे, ना बदलेंगे

मदन मोहन बाहेती घोटू

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