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बुधवार, 2 सितंबर 2020

यूं जीना आसान नहीं है

कटा उन्यासी वर्षों जीवन
कभी ख़ुशी थी और कभी गम
देख लिए सारे ही मौसम
बाकी दिन भी कटे ख़ुशी से ,
             अब मन में अरमान यही है
संग उमर के लगी बिमारी
वृद्धावस्था की लाचारी
रोज दवा की मारामारी
ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
             यूं जीना आसान नहीं है
ठुकरा दूँ सारे  आमंत्रण
खानपान पर रखूँ नियंत्रण
फिर जीवन में क्या आकर्षण
मन को हरदम रहो मसोसे ,
            होठों पर मुस्कान नहीं है
बार बार कहता है ये मन
बचा हुआ थोड़ा सा जीवन
मनमरजी से क्यों न जियें हम
जब तक जीवन मज़ा उठायें ,
          मन पर कोई लगाम नहीं है
दिवस मौत का अगर मुक़र्रर
तो फिर हम क्यों जियें डर कर
जीवन का सुख लूटें जी भर
तरस तरस कर भी क्या जीना ,
             जिन्दा है पर जान नहीं है
रचे प्रभु ने सुख के साधन
मीठा और चटपटा भोजन
कर उपयोग मज़ा पाएं हम
तिरस्कार उन सबका करना ,
          क्या प्रभु का अपमान नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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