कैसे कर स्वीकार लूं ?
प्रेम दीपक जला मन मंदिर में उजियाला करूं
केश जो हैं हुए उजले ,उन्हें रंग ,काला करूँ
फेसबुक पर गीत रोमांटिक लिखूं,डाला करूं
नित नए फैशन के कपडे ,पहन, कर शृंगार लूं
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं
,मानता हूँ,ओज वाणी का जरा हो कम गया
मानता हूँ ,जोश का जज्बा जरा अब थम गया
ये भी सच है ,बहारों का अब नहीं मौसम रहा
भावनाएं ,पर मचलती, कैसे मन को मार लूं
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं
उम्र के वरदान को मैं ,ऐसे सकता खो नहीं
अपने मन को मार लेकिन जिया जाता यों नहीं
देख सकता चाँद को तो चंद्रमुखी को क्यों नहीं
हुस्न से और जवानी से ,क्यों न कर मैं प्यार लूं
मगर मैं बूढा हुआ ये कैसे कर स्वीकार लूं
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
वाह, बहुत खूब
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