दानी श्रेष्ठ चन्द्रमा
सूर्य से ले रौशनी तू उधारी में
,मुफ्त सबको चांदनी बांटे सुहानी
अपनी सोलह कलायें सब पर बिखेरे ,
तुझसे बढ़ कर भला होगा कौन दानी
समुन्दर मंथन किया ,अमृत पिया था ,
शरद पूनम पर उसे भी तू लुटाता
कभी घटता ,कभी बढ़ता ,चमचमाता ,
सुन्दरीमुख ,चन्द्रमुख है कहा जाता
एक तू ही देव महिलाएं जिसे सब ,
भाई कह, बच्चों का मामा बोलती है
एक तू ही देख कर जिसको सुहागन ,
बरत करवा चौथ वाला खोलती है
एक तू ही है जिसे नजदीक पाकर ,
मारने लगता उछालें ,उदधि का जल
एक तू ही चांदनी जिसकी हमेशा ,
सुहानी सुखदायिनी है ,मृदुल शीतल
प्रेमियों के हृदय की धड़कन बढ़ाता
,तारिकाओं से घिरा रहता सदा है
शिवजी के मस्तक पे शोभित चन्द्रमा तू ,
सबसे ज्यादा तू ही पूजित देवता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।