दलिया बना दिया
मै गेहुआं सा ,गेंहूं के दाने की तरह था,
तुम चांवलों सी गौरवर्णी और छरहरी
देखा जो तुमको ,मुझको ,तुमसे प्यार हो गया ,
ऐसा लगा कि मिल गई है सपनो की परी
तुम तो उमर के साथ ,उबल कर बड़ी हुई ,
आया निखार ऐसा कि रंगत बदल गयी
खुशबू से भरा,नर्म प्यारा , जिस्म जब खिला ,
मुझको लगा कि मेरी तो किस्मत बदल गयी
कह कह के निठल्ला और पीछे पड़ के रात दिन,
तुमने बदल के मेरा क्या हुलिया बना दिया
पुचकार कर के प्यार से पीसा है इस तरह ,
आटा बना दिया कभी दलिया बना दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मै गेहुआं सा ,गेंहूं के दाने की तरह था,
तुम चांवलों सी गौरवर्णी और छरहरी
देखा जो तुमको ,मुझको ,तुमसे प्यार हो गया ,
ऐसा लगा कि मिल गई है सपनो की परी
तुम तो उमर के साथ ,उबल कर बड़ी हुई ,
आया निखार ऐसा कि रंगत बदल गयी
खुशबू से भरा,नर्म प्यारा , जिस्म जब खिला ,
मुझको लगा कि मेरी तो किस्मत बदल गयी
कह कह के निठल्ला और पीछे पड़ के रात दिन,
तुमने बदल के मेरा क्या हुलिया बना दिया
पुचकार कर के प्यार से पीसा है इस तरह ,
आटा बना दिया कभी दलिया बना दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।