कांग्रेस का आत्मचिंतन
आरती उतारते थे जो कभी ,
उनने इज्जत देखलो उतार ली
उनके हक़ को हमने मारा था बहुत ,
मिला मौका ,उनने डंडी मार ली
मेट्रो और फ्लाई ओवर बनाये ,
दिल्ली की सूरत बड़ी निखार ली
अर्श से हम फर्श पर है आ गिरे ,
हमने सारी ज़हमतें बेकार ली
नब्ज ना पहचानी हमने वक़्त की ,
सीख ना कुछ समय के अनुसार ली
झगड़ते हम यूं ही आपस में रहे,
और देखो,उनने बाज़ी मार ली
हम तो फंस के रह गए मंझधार में,
और उनने लगा नैया पार ली
समझा था ,अदना बहुत अरविन्द को ,
झाड़ू ने सीटें सभी बुहार ली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आरती उतारते थे जो कभी ,
उनने इज्जत देखलो उतार ली
उनके हक़ को हमने मारा था बहुत ,
मिला मौका ,उनने डंडी मार ली
मेट्रो और फ्लाई ओवर बनाये ,
दिल्ली की सूरत बड़ी निखार ली
अर्श से हम फर्श पर है आ गिरे ,
हमने सारी ज़हमतें बेकार ली
नब्ज ना पहचानी हमने वक़्त की ,
सीख ना कुछ समय के अनुसार ली
झगड़ते हम यूं ही आपस में रहे,
और देखो,उनने बाज़ी मार ली
हम तो फंस के रह गए मंझधार में,
और उनने लगा नैया पार ली
समझा था ,अदना बहुत अरविन्द को ,
झाड़ू ने सीटें सभी बुहार ली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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